Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
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भारतके प्राचीन राजवंश
परन्तु इस लाटका सम्बन्ध चेदीके गाङ्गेयदेव और दक्षिणके चौलुक्य जयसिंह पर प्राप्त की हुई भोजकी जीतसे हो तो कोई आश्चर्य नहीं। जयसिंह तिलङ्गानेका राजा था । उसी पर प्राप्त हुई जीतका बोधक होनेसे इस लाटका नाम — गांगेय-तिलिंगाना लाट' पड़ा होगा । जब जयसिंहने धारा पर चढ़ाई की तब नालछा उसके मार्गमें पड़ा होगा। सो शायद उसने इस पहाड़ीके आस पास डेरे डाले होंगे । इस कारण इसका नाम तिलिंगाना-टेकरी पड़ गया होगा । समयके प्रभावसे इस विजयका हाल और विजित राजाओंका नाम आदि, सम्भव है, लोग भूल गये हों और इन नामोंके सम्बन्धमें कहावतें सुन कर नई कथा बना ली हो। इससे “कहाँ राजा भोज और कहाँ गांगेय और तैलंगराज" की कहावतमें गंगिया तेलिन या गंगू तेलीको ढूंस दिया हो । गाङ्गेयका निरादरसूचक या अपभ्रष्ट नाम गांगी, या गांगली और तिलिंगानाका तेलन हो जाना असम्भव नहीं। कहावतें बहुधा किसी न किसी बातका आधार जरूर रखती हैं । परन्तु हम यह पूर्ण निश्चयके साय नहीं कह सकते कि तिलिंगानेके कौनसे राजाका हराया जाना इस लाटसे सूचित होता है । तथापि हम इतना अवश्य कह सकते हैं कि यह बात १०४२ ईसवीके पर्व हुई होगी। क्योंकि उस समय गाङ्गेयदेवका उत्तराधिकारी कर्ण राजासन पर बैठा था।
धाराके चारों तरफका कोट भी भोजका बनाया हुआ बताया जाता है। ऐसी प्रसिद्धि है कि मांडू (मण्डपदुर्ग) में भी भोजने कोट बनवाया था और कई सौ विद्यार्थियों के लिए, गोविन्दभट्टकी अध्यक्षतामें, विद्यालय स्थापित किया था । वहाँ अब तक कुवे पर भोजका नाम खुदा हुआ है।
भोजकी खुदाई हुई भोजपुरी झीलको पन्द्रहवीं शताब्दीमें मालवेके हशंगशाहने नष्ट कर दिया । भूपालकी रियासतमें इस झीलकी जमीन इस समय सबसे अधिक उपजाऊ गिनी जाती है।
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