Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मालवेके परमार।
प्रबन्धकारोंने लिखा है कि भोजके अनेक स्त्रियाँ और पुत्र थे। पर कोई बात निश्चयात्मक नहीं लिखी । भोजका उत्तराधिकारी जयसिंह शायद भोजहीका पुत्र हो । पर भोजके सम्बन्धी बांधवों में केवल उदयादित्य ही कहा जाता है । उदयादित्यका वर्णन भी आगे किया जायगा।
मिस्टर विन्सेन्ट स्मिथ अपने भारतवर्षीय इतिहासमें लिखते हैं कि भोजने ४० वर्षसे अधिक राज्य किया । मुञ्जकी तरह इसने भी अनेक युद्ध और सन्धियाँ की । यद्यपि इसके युद्धादिकोंकी बातें लोग भूल गये हैं; तथापि इसमें सन्देह नहीं कि भोज हिन्दुओंमें आदर्श राजा समझा जाता है । वह कुछ कुछ समुद्रगुप्तके समान योग्य और प्रतापी था ।
१०-जयसिंह (प्रथम)। भोजके पीछे उसका उत्तराधिकारी जयसिंह गद्दीपर बैठा । यद्यपि उदयपुर (ग्वालियर), नागपुर आदिकी प्रशस्तियोंमें भोजके उत्तराधिकारीका नाम उदयादित्य लिखा है, तथापि वि० सं० १११२ ( ई० स० १०५५) आषाढ वदि १२ का जो दानपत्रं मिला है उससे स्पष्टतापूर्वक प्रकट होता है कि भोजका उत्तराधिकारी जयसिंह ही था। यह दान-पत्र स्वयं जयसिंहका खुदाया हुआ है और धारामें ही दिया गया था।
भोजके मरनेपर, उसके राज्यपर उसके शत्रुओंने आक्रमण किया। इसका वर्णन हम पूर्व ही कर चुके हैं । इस आक्रमणका फल यह हुआ कि धारा नगरी चेदीके राजा कर्णके हाथमें चली गई थी। उस समय शायद धारापति जयसिंह विन्ध्याचलकी तरफ चला गया हो, और बादमें कर्ण और भीम द्वारा धाराकी गद्दीपर बिठला दिया गया हो। यह पुरानी कथाओंसे प्रकट होता है। यह भी सम्भव है कि इसके कुछ (१) The Early History of India, P. 317. (२) Ep. Ind, Vol. III, p. 86.
१२९
For Private and Personal Use Only