Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मालवेके परमार।
अर्थात् कलशका भाई लोहराका स्वामी बड़ा प्रतापी और भोजकी तरह कीर्तिमान था। ___ इन श्लोकोंसे प्रकट होता है कि कलश, क्षितिपति और बिल्हण, भोजके समकालीन थे। ___ डाक्टर बूलरने भी राजतरङ्गिणीके पूर्वोक्त श्लोकके उत्तरार्धमें कहे हुए'तस्मिन्क्षणे'-इन शब्दोंसे भोजको कलशके समय तक जीवित मान कर विक्रमाङ्कदेवचरितके निम्नलिखित श्लोकके अर्थमें गड़बड़ कर दी है:
भोजमाभृत्स खलु न खलैस्तस्य साम्यं नरेन्द्रस्तत्प्रत्यक्षं किमिति भवता नागतं हा हतास्मि । यस्य द्वारोडमरशिखरकोड़पारावतानां
नादव्याजादिति सकरुणं व्याजहारेव धारा ॥ ९६ ॥ अर्थात्-धारा नगरी दरवाजे पर बैठे हुए कबूतरोंकी आवाज द्वारा मानो बिल्हणसे (जिस समय वह मध्यभारतमें फिरता था) बोली कि मेरा स्वामी भोज है, उसकी बराबरी कोई और राजा नहीं कर सकता। उसके सम्मुख तुम क्यों न हाजिर हुए ? अर्थात् तुमको उसके पास आना चाहिए।
परन्तु वास्तवमें उस समय भोज विद्यमान न था। अतएव ठीक अर्थ इस श्लोकका यह है कि-धारा नगरी बोली कि बड़े अफसोसकी बात है कि तुम भोजके सामने, अर्थात् जब वह जीवित था, न आये। यदि आते तो वह तुम्हारा अवश्य ही सम्मान करता।
राजा कलश १०६३ ईसवी (वि० सं०११२०) में गद्दी पर बैठा और १०८९ ईसवी (वि० सं० ११४६ ) तक विद्यमान रहा । अतएव यदि राजतरङ्गिणीवाले श्लोक पर विश्वास किया जाय तो वि० सं० ११२० (१०६३ ईसवी) के बाद तक भोजको विद्यमान मानना पड़ेगा। इसी श्लोकके आधार पर डाक्टर बूलर और स्टीनने कलशके समय भोजका जीवित होना
१२५
For Private and Personal Use Only