Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भारतके प्राचीन राजवंश
हलायुध। इसने मुञ्जके समयमें पिङ्गल छन्दःसूत्र पर 'मृतसञ्जीवनी' टीका लिखी।
इस नामके और दो कवि हुए हैं। डाक्टर भाण्डारकरके मतानुसार कविरहस्य और अभिधान-रत्नमालाका कर्ता हलायुध दक्षिणके राष्ट्रकूटोंकी सभा, वि० सं० ८६७ (८१० ईसवी ) में विद्यमान था । ___ इसी नामका दूसरा कवि बङ्गालके आखिरी हिन्दू-राजा लक्ष्मणसेनकी सभामें, वि० सं० १२५६ (११९९ ईसवी) में, विद्यमान था। मान्धाताके अमरेश्वर-मन्दिरकी शिवस्तुति शायद इसीकी बनाई हुई है । यह स्तुति वहाँ दीवार पर खुदी हुई है ।
तीसरा हलायुध. डाक्टर बुलरके मतानुसार मुञ्जके समयका यही हलायुध है । कथाओंसे ऐसा भी पाया जाता है कि इसने मृतसञ्जीवनी टीकाके सिवा 'राजव्यवहारतत्त्व' नामकी एक कानूनी पुस्तक भी बनाई . थी। जिस समय यह मुअका न्यायाधिकारी था उसी समय इसने उसकी रचना की थी। कोई कोई कहते हैं कि हलायुध नामके १२ कवि हो गये हैं।
अमितगति। यह माथुरसंघका दिगम्बर जैन साधु था। इसने, वि० सं० १०५० (९९३ ईसवी ) में, राजा मुझके राज्य-कालमें सुभाषितरत्नसन्दोह नामक ग्रन्थ बनाया, और, वि० सं० १०७० (१०१३ ईसवी ) में धर्मपरीक्षा नामक ग्रन्थकी रचना की। इसके गुरुका नाम माधवसेन था ।
८-सिन्धुराज (सिन्धुल)। मुञ्जने अपने जीते जी भोजको युवराज बना लिया था। उसके थोड़े ही दिन बाद वह मारा गया । उस समय, भोजके बालक होनेके कारण, उसके पिता सिन्धुराजने राजकार्य अपने हाथमें ले लिया । इसीसे
For Private and Personal Use Only