Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
क्षत्रप-वंश |
'नृपशालिवाहन शके १२७६
इससे प्रकट होता है कि ईसवी सन्की १४ वीं शताब्दी में दक्षिणबालोंने उत्तरी भारतके मालवसंवत् के साथ विक्रमादित्यका नाम जुड़ा हुआ देखकर इस संवत् के साथ अपने यहाँकी कथाओं में प्रसिद्ध राजा शालिवाहन ( सातवाहन ) का नाम जोड़ दिया होगा ।
यह राजा आन्ध्रभृत्य - वंशका था । इस वंशका राज्य ईसवी सन् पूर्वकी दूसरी शताब्दी ईसवी सन् २२५ के आसपास तक दक्षिणी भारत पर रहा। इनकी एक राजधानी गोदावरी पर प्रतिष्ठानपुर भी था । इस वंशके राजाओंका वर्णन वायु, मत्स्य, ब्रह्माण्ड, विष्णु और भागवत आदि पुराणों में दिया हुआ है । इसी वंशमें हाल शातकर्णी बड़ा प्रसिद्ध राजा हुआ था। अतः सम्भव है कि दक्षिणवालोंने उसीकानाम संवत् के साथ लगा दिया होगा । परन्तु एक तो सातवाहनके वंशजोंके शिलालेखों में केवल राज्य-वर्ष ही लिखे होनेसे स्पष्ट प्रतीत होता है कि उन्होंने यह संवत् प्रचलित नहीं किया था । दूसरा, इस वंशका राज्य अस्त होनेके बाद करीब ११०० वर्ष तक कहीं भी उक्त संवत् के साथ जुड़ा हुआ शालिवाहनका नाम न मिलनेसे भी इसी बात की पुष्टि होती है । कुछ विद्वान इस संवतको तुरुष्क ( कुशन ) वंशी राजा कनिष्कका, कुछ क्षत्रप नहपानका कुछ शक राजा वेन्सकी और कुछ शक राजा अय ( अज - Azeo ) का प्रचलित किया हुआ मानते हैं । परन्तु अभी तक कोई बात पूरी तौरसे निश्चित नहीं हुई है।
शक संवत्का प्रारम्भ विक्रम संवत् १३६ की चैत्रशुक्का प्रतिपदाको हुआ था, इस लिए गत शक संवत् १३५ जोड़नेसे गत चैत्रादि विक्रमसंवत् और ७८ जोड़ने से ईसवी सन आता है । अर्थात् शक संवत्का और विक्रम संवत्का अन्तर १३५ वर्षका है, तथा शक संवत्का और
( १ ) K. list of Inscs of S. India, p. 78, No. 455.
For Private and Personal Use Only