Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
हैहय वंश।
रीके लेखमें इस तरह दी है-कदंबगुहा स्थानमें, रुद्रशंभु नामक तपस्वी रहता था। उसका शिष्य मत्तमयूरनाथ, अवन्तीके राजाके नगरमें जा रहा । उसके पीछे क्रमशः धर्मशंभु, सदाशिव माधुमतेय, चूड़ाशिव, हृदयशिव और अघोरशिव हुए।
बिल्हारीके लेखमें लिखा है कि, वह अपनी और अपने सामंतोंकी सेना सहित, पश्चिमकी विजययात्रामें, शत्रुओंको जीतता हुआ समुद्र तटपर पहुँचा । वहाँ पर उसने समुद्रमें स्नानकर सुवर्णके कमलोंसे सोमेश्वर ( सोमनाथ सौराष्ट्र के दक्षिणी समुद्र तटपर) का पूजन किया; और कोसलके राजाको जीत, औड्रके राजासे ली हुई, रत्नजटित सुवकी बनी कालिय (नाग) की मूर्ति, हाथी, घोड़े, अच्छी पोशाक, माला और चन्दन आदि सोमेश्वर ( सोमनाथ ) के अर्पण किये।
इसकी रानीका नाम राहड़ा था। तथा इसकी पुत्री बोथा देवीका विवाह, दक्षिणके चालुक्य ( पश्चिमी ) राजा विक्रमादित्य चौथेसे हुआ था, जिसके पुत्र तैलपने, राठोड़ राजा कक्कल ( कर्क दूसरे ) से राज्य छीन, वि० सं० १०३० से १०५४ तक राज्य किया था; और मालवाके राजा मुंज ( वाक्पतिराज ) ( भोजके पिता सिंधुराजके बड़े भाई ) को मारा था । लक्ष्मणने बिल्हारीमें लक्ष्मणसागर नामक बड़ा तालाब बनवाया । अब भी वहाँके एक खड़हरको लोग राजा लक्ष्मणके महल बतलाते हैं । इसके दो पुत्र शंकरगण और युवराजदेव हुए; जो क्रमशः गद्दी पर बैठे!
६-शंकरगण । यह अपने पिता लक्ष्मणका ज्येष्ठ पुत्र और उत्तराधिकारी था । इसका ऐतिहासिक वृत्तान्त अब तक नहीं मिला । इसके पीछे इसका छोटा भाई युवराजदेव (दूसरा) गद्दी पर बैठा ।
(१)) Ep. Iud. Vol. I. P. 252 ) (२) Ep. Ind, Vol. I, P. 260. (३) 0. A. R. Vol IX P. 115.
४३
For Private and Personal Use Only