Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
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भारतके प्राचीन राजवंश
शायद गांगेयदेवके समय हैहयोंका राज्य, अधिक बढ़ गया हो; और प्रयाग भी उनके राज्यमें आगया हो । प्रबन्धचिंतामणिमें गांगेयदेवके पुत्र कर्णको काशीका राजा लिखा है ।
१०-कर्णदेव । यह गांगेयदेवका उत्तराधिकारी हुआ । वीर होनेके कारण इसने अनेक लड़ाइयाँ लड़ीं । इसीने अपने नाम पर कर्णावती नगरी बाई । जनरल कनिङ्गहमके मतानुसार इस नगरीका भग्नावशेष मध्यप्रदेशमें कारीतलाईके पास है। काशीका कर्णमेरु नामक मन्दिर भी इसीने बनवाया था ।
भेड़ाघाटके लेखके बारहवें श्लोकमें उसकी वीरताका इस प्रकार वर्णन है:
पाण्ड्यश्चण्डिमताम्मुमोच मुरलस्तत्त्याजग(ग्र )ह', (कु) ः सद्गतिमाजगाम चकपे बङ्गः कलिङ्गैः सह । कीरः कीरवदासपंजरगृहे हूण 80 प्रपषं जहौ,
यस्मिन्राजनि शौर्यविभ्रमभरं विभ्रत्यपूर्वप्रभे॥ अर्थात्-कर्णदेवके प्रताप और विक्रमके सामने पाण्ड्य देशके राजाने उग्रता छोड़ दी, मुरलोंने गर्व छोड़ दिया, कुङ्गोंने सीधी चाल ग्रहण की, बङ्ग और कलिङ्ग देशवाले कॉप गये, कीरवाले पिञ्जड़ेके तोतेकी तरह चुपचाप बैठ रहे और हूणोंने हर्ष मनाना छोड़ दिया । ___ कर्णबेलके लेखमें सिखा है कि, चोड़, कुंग, हूण, गौड़, गुर्जर, और कीरके राजा उसकी सेवामें रहा करते थे।
(१) Ep. Iud. Vol. II, p. 1I, (२) Read गर्वाग्रहं । (३) Read चकम्पे । (४) Read हूण : प्रहर्ष () Ind, Ant, Vol, XVIII, P.217.
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