Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
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आबूके परमार ।
स. १२३०) में आबू पर तेजपालके मन्दिरकी प्रतिष्ठा हुई । यह मन्दिर हिन्दुस्तानकी उत्तमोत्तम कारीगरीका नमूना समझा जाता है । इस मन्दिरके लिए इस राजाने डबाणी गाँव दिया था। विक्रम संवत् १२८७ के सोमसिंहके समयके दो लेख इसी मन्दिरमें लगे हैं। विक्रम संवत् १२९० का एक शिला-लेख गोड़वाड़ परगनेके नाण गाँव (जोधपुर-राज्य) में मिला है। उससे प्रकट होता है कि सोमसिंहने अपने जीतेजी अपने पुत्र कृष्णराजको युवराज बना दिया था। उसके खर्च के लिये नाणा गाँव (जहाँ यह लेख मिला है ) दिया गया था ।
१६-कृष्णराज तीसरा । यह सोमसिंहका पुत्र था और उसके पीछे उसका उत्तराधिकारी हुआ । इसको कान्हड़ भी कहते थे। पाटनारायणके लेखमें इसका नाम कृष्णदेव और वस्तुपाल-तेजपालके मन्दिरके दूसरे लेखमें कान्हड़देवलिखा है । अपने युव-राजपनमें प्राप्त नाणा गाँवमें लकुलदेव महादेवकी पूजाके निमित्त इसने कुछ वृत्ति लगा दी थी। अतः अनुमान होता है कि यह शैव था । इसके पुत्रका नाम प्रतापसिंह था ।।
१७-प्रतापसिंह । यह कृष्णराजका पुत्र था । उसके बाद यह गद्दी पर बैठा । जैत्रकर्णको जीत कर दूसरे वंशके राजाओंके हाथमें गई हुई अपने पूर्वजोंकी राजधानी चन्द्रावतीको इसने फिर प्राप्त किया। यह बात पाटनारायणके लेखसे प्रकट होती है । यथाः. कामं प्रमथ्य समरे जगदेकवीरस्तं जैत्रकर्णमिह कर्णमिवेन्द्रसूनुः ।
चन्द्रावती परकुलोदधिदूरमग्नामुर्वी वराह इव यः सहसोद्दधार ॥ १८ ॥ यह जैत्रकर्ण शायद मेवाड़का जैत्रसिंह हो, जिसका समय विक्रम(१) लकुलीश महादेव (लकुलदेव) की मूर्ति पद्मासनसे बैठी हुई जैनमूर्तिके समान होती है । उसके एक हाथमें लकड़ी और दूसरेमें बिजौरेका फल होत है। उसमें ऊर्चरेता होनेका चिह्न भी रहता है ।
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