Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
मालवेके परमार।
अर्थात्-लक्ष्मी तो विष्णुके पास चली जायगी और वीरता बहादुरोंके पास । परन्तु मुनके मरने पर बेचारी सरस्वती निराधार हो जायगी। उसे कहीं जानेका ठिकाना न रहेगा।
इसके बाद मुनका सिर काट लिया गया । उस सिरको सूली पर, राजमहलके चौकमें, खड़ा करके तैलपने अपना क्रोध शान्त किया। जब यह समाचार मालवे पहुँचा तब मन्त्रियोंने उसके भतीजे भोजको राजसिंहासन पर बिठा दिया। __ प्रबन्धचिन्तामणिकारके लिखे हुए इस वृत्तान्तमें मुञ्जकी उत्पत्तिका, सिन्धुलकी आँखें निकलवाने और लकड़ी के पीजड़ेमें बन्द करनेका, तथा भोजके मारनेका जो हाल लिखा है वह बिलकुल बनावटी सा मालूम होता है।
नवसाहसाङ्कचरितका कर्ता पद्मगुप्त (परिमल), जो मुनके दरबारका मुख्य कवि था और जो सिन्धुराजके समयमें भी जीवित था, अपने काव्यके ग्यारहवें सर्गमें लिखता है:
पुरं कालक्रमात्तेन प्रस्थितेनाम्बिकापतेः ।
मौव्रिणकिणाङ्कस्य पृथ्वी दोष्णि निवेशिता ॥ ९८ ॥ अर्थात्-वाक्पतिराज ( मुझ ) जब शिवपुरको चला तब राज्यका भार अपने भाई सिन्धुराज पर छोड़ गया।
इससे साफ पाया जाता है कि दोनों भाइयोंमें वैमनस्य न था, और न सिन्धुराज अन्धा ही था ।
इसी तरह धनपाल पण्डित भी, जो श्रीहर्षसे लेकर भोज तक चारों राजाओंके समयमें विद्यमान था, अपनी बनाई हुई तिलकमनरीमें लिखता
(१) किसी किसी हस्तलिखित पुस्तकमें वृक्षकी शाखासे लटकाकर फाँसी दी जानेका उल्लेख है।
For Private and Personal Use Only