Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
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हैहय-वंश ।
नरसिंहदेवके समयके तीन शिलालेख मिले हैं । उनमेंसे प्रथम दो, चे० सं० ९०७' और ९०९ (वि०सं० १२१२ और १२१५ ) के हैं। तथा तीसरा वि० सं० १२१६ का।
१४-जयसिंहदेव । यह अपने बड़े भाई नरसिंहदेवका उत्तराधिकारी हुआ; उसकी रानीका नाम गोसलादेवी था । उससे विजयसिंहदेवका जन्म हुआ । जयसिंहदेवके समयके तीन लेख मिले हैं । पहला चे० सं० ९२६ (वि० सं० १२३२ ) का और दूसरा चे० सं० ९२८ (वि० सं० १२३४ ) को है। तथा तीसरेमें संवत् नहीं है।
१५-विजयसिंहदेव ।। यह जयसिंहका पुत्र था, तथा उसके पीछे गद्दी पर बैठा । उसका एक ताम्रपत्र चे० सं०९३२ (वि० सं० १२३७) का मिला है । उससे वि० सं० १२३४ और वि० सं० १२३७ के बीच विजयसिंहके राज्याभिषेकका होना सिद्ध होता है। उसके समयका दूसरा ताम्रपत्र वि० सं० १२५३ का हैं ।
१६-अजयसिंहदेव । __ यह विजयसिंहदेव का पुत्र था। विजयसिंहदेवके समयके चे० सं० ९३२ (वि० सं० १२३७) के लेखमें इसका नाम मिला है। इस राजाके बादसे इस वंशका कुछ भी हाल नहीं मिलता।।
रीवाँमें करदीके राजाओंके चार ताम्रपत्र मिले हैं। उनके संवतादि इस प्रकार हैं
(१) Ep. Iud. Vol. II. P. 10. (२ ) Ind. Ant. Vol. XVIII, P. 212.(३) Ind. Ant, Vol. XVIII, P. 214. (४) Ind. Ant. Vol. XVII, P. 226. (५) Ep. Ind. Vol. II, P. 18, (६) Ind. Ant. Vol. XVIII, P. 216. (७) J. B. A, S. Vol. VIII, P. 481. (८) Ind. .Ant. Vol. XVII. P.238.
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