Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
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क्षत्रप-चंश ।
विजयसेनके शक-सं० १६७ और १६८ के ढले सिक्कोंसे लेकर इस वंशकी समाप्ति तकके सिक्कोंमें उत्तरोत्तर कारीगरीका ह्रास पाया जाता है। परन्तु बीचबीचमें इस ह्रासको दूर करनेकी चेष्टाका किया जाना भी प्रकट होता है।
दामजदश्री तृतीय। [श०सं० १७२ ( या १७३)-१७६( ई० स० २५० ) (या २५१)२५४=वि० सं० ३०७ (या ३०८)-३११)]
यह दामसेनका पुत्र था और श० सं० १७२ या १७३ में अपने भाई विजयसेनका उत्तराधिकारी हुआ। ___ इसके महाक्षत्रप उपाधिवाले चाँदीके सिक्के मिले हैं । इन पर उलटी तरफ “ राज्ञो महाक्षत्रपस दामसेनपुत्रस राज्ञो महाक्षत्रपस दामजंदश्रियः" या ".... श्रिय" -और सीधी तरफ संवत् लिखा रहता है।
रुद्रसेन द्वितीय । [ शक-सं• १.८ ()-१९६ ( ई० स० २५६ (2)-२७४) वि. सं.
३१३ (१)-३३१)] यह वीरदामाका पुत्र और अपने चचा दामजदश्री तृतीयका उत्तराधिकारी था । __इसके सिक्कों पर संवतोंके साफ पढ़े न जानेके कारण इसके राज्य-समयका निश्चित करना कठिन है । इसके सिक्कोंपरका सबसे पहला संवत् १७६ और १७९ के बीचका और आखिरी १९६ होना चाहिए ।
इसके महाक्षत्रप उपाधिवाले चाँदीके सिक्के मिले हैं । इन पर उलटी तरफ “ राज्ञः क्षत्रपस वीरदामपुत्रस राज्ञो महाक्षत्रपस रुद्रसेनस" और सीधी तरफ शक-सं० लिखा रहता है ।
इसके दोपुत्र थे। विश्वसिंह और भर्तृदामा ।
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