Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
भारतके प्राचीन राजवंश
संवत् चलाया था, जो कलचुरी संवत्के नामसे प्रसिद्ध था । परन्तु उसके चलानेवाले राजाके नामका, कुछ पता नहीं लगता । उक्त संवत् वि० सं० ३०६ आश्विन शुक्ल १ से प्रारम्भ हुआ और १४ वीं शताब्दीके अन्त तक वह चलता रहा । कलचुरियोंके सिवाय, गुजरात ( लाट ) के चौलुक्य, गुर्जर, सेन्द्रक और त्रैकूटक वंशके राजाओंके ताम्रपत्रोंमें भी यह सम्वत् लिखा मिलता है।
हैहयोंका शृंखलाबद्ध इतिहास वि० सं० ९२० के आसपाससे मिलता है, और इसके पूर्वका प्रसंगवशात् कहीं कहीं निकल आता है। जैसे-वि० सं० ५५० के निकट दक्षिण ( कर्णाट ) में चौलुक्योंने अपना राज्य स्थापन किया था; इसके लिये येवूरके लेखमें लिखा है कि, चौलुक्योंने नल, मौर्य, कदम्ब, राष्ट्रकूट और कलचुरियोंसे राज्य छीना था । आहोलेके लेखमें चौलुक्य राजा मंगलीश ( श० सं० ५१३-५३२=वि० सं० ६४८-६६६ ) के वृत्तान्तमें लिखा है कि उसने अपनी तलवारके बलसे युद्धमें कलचुरियोंकी लक्ष्मी छीन ली। यद्यपि इस लेखमें कलचुरि राजाका नाम नहीं है; परन्तु महाकूटके स्तम्भ परके लेखमें उसका नाम बुद्ध और नरूरके ताम्रपत्रमें उसके पिताका नाम शंकरगण लिखा है । संखेड़ा (गुजरात ) के शासनपत्रंमें जो, पल्लपति (भील) निरहुल्लके सेनापति शांतिलका दिया हुआ है, शङ्करगणके पिताका नाम कृष्णराज मिलता है।
बुद्धराज और शङ्करगण चेदीके राजा थे; इनकी राजधानी जबलपुरकी तेवर (त्रिपुरी ) थी; और गुजरातका पूर्वी हिस्सा भी इनके ही अधीन था। अतएव संखेड़ाके ताम्रपत्रका शङ्करगण, चेदीका राजा शङ्करगण ही था।
(१) Ind, Ant Vol, VIII, P. ii, (२ ) EP. ind. VI, P. 264,. (३) Ind. Ant vol. XIX P. 16 (४) Ind. A nt. vol. VII, P. 161 (५) Ep, Ind. vol. II P.24.
For Private and Personal Use Only