Book Title: Bharat ke Prachin Rajvansh Part 01
Author(s): Vishveshvarnath Reu, Jaswant Calej
Publisher: Hindi Granthratna Karyalaya
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क्षत्रप-वंश ।
जयदामाके ताँबेके सिक्कों पर ६ चश्मोंका चैत्य मिला है। परन्तु उसके नीचे सर्पाकार रेखा नहीं होती है।
क्षत्रपोंके इतिहासकी सामग्री । क्षत्रपोंके इतिहास लिखनेमें इनके केवल एक दर्जन लेखों तथा कई हजार सिक्कोंसे ही सहायता मिल. सकती है। क्योंकि इनका प्राचीन लिखित विशेष वृत्तान्त अभी तक नहीं मिला है।
भूमक । [ श० सं० ४१ (ई. स. ११९ वि० सं० १७६ ) के पूर्व ] शक संवत् ४१ ( ईसवी सन् ११९=विक्रमी संवत् १७६ के पूर्व क्षहरत-वंशका सबसे पहला नाम भूमक ही मिला है । परन्तु इसके समयके लेख आदिकोंके अब तक न मिलनेके कारण यह नाम भी केवल सिक्कों पर ही लिखा मिलता है।
उक्त भूमकके अब तक ताँबेके बहुत ही थोड़े सिक्के मिले हैं । इन पर किसी प्रकारका संवत् नहीं लिखा होता । केवल सीधी तरफ खरोष्ठी अक्षरोंमें “ छहरदस छत्रपस भुमकस" और उलटी तरफ बाह्मी अक्षरों में "क्षहरातस क्षत्रपस भूमकस" लिखा होता है । __ हम प्रस्तावनामें पहले लिख चुके हैं कि इसके सिक्कों पर एक तरफ अधोमुख बाण और वज्रके तथा दूसरी तरफ सिंह और चक्र आदिके चिह्न बने होते हैं । सम्भवतः इनमेंका सिंहका चिह्न ईरानियोंसे और चक्रका चिह्न बौद्धोंसे लिया गया होगा।
यद्यपि इसके समयका कोई लेख अब तक नहीं मिला है तथापि इसके उत्तराधिकारी नहपानके समयके लेखसे अनुमान होता है कि भूमकका राज्य शक-संवत् ४१ के पूर्व था।
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