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यज्ञ-पुरुष का अवरोहण
मैं कहाँ चली गयी थी? ब्राह्म मुहूर्त में उठ कर इस शिलातल पर आ बैठी थी। तभी से जाने कहाँ खो गयी थी। और अब पूर्व में द्वाभा फूट रही है। ऐसा लग रहा है, इस एक प्रहर में जन्मान्तर की एक दीर्घ रात्रि में भटक कर लौटी हूँ। नये सिरे से अपने इस पिण्ड और परिवेश को पहचान रही हूँ। । 'हाँ, मैं ही तो हूँ, जालन्धर गोत्रीया देवानन्दा ब्राह्मणी । और मेरे पति हैं, कोडाल गोत्रीय ब्राह्मण ऋषभदत्त । • • यह वसतिका है, ब्राह्मण-कुण्डपुर । लोक में यह ब्रह्मपुरी के नाम से ही अधिक विख्यात है। मेरे पति ऋषभ इसके स्वामी हैं। और मैं हूँ इसकी स्वामिनी।
.. 'सामने दूर पर बह रही है हिरण्यवती नदी। उस पार दूर तक फैला है बहुसाल चैत्य का विशाल उद्यान । उसके पूर्वी छोर पर है, क्षत्रिय कुण्डपुर । उसके भवन-शिखरों की पताकाएँ आज किसका आवाहन कर रही हैं ?
यह विदेहों की वैशाली है। विदेशी यात्री दन्त-कथाओं की तरह, देश-देशान्तरों में इसके वैभव का गान करते हैं। यहाँ विदेहराज जनक ने देह में रह कर ही, राज भोगों को भोगते हुए, देहातीत के मुक्त ऐश्वर्य को पृथ्वी पर प्रकट किया था। यहां याज्ञवल्क्य ने वेद-पुरुष को साक्षात् किया था। इस हिरण्यवती के जल सीता, मैत्रेयी और गार्गी के स्नान-जल से प्रभाविल हैं। याज्ञवल्क्य और मैत्रेयी : उषा और पूषन् का दिव्य युगल ! सविता और गायत्री ने यहाँ मधुच्छन्दा की नयी स्वरमाला रची है।
• 'हां, यह लिच्छवियों की वैशाली है। पूर्वीय आर्यावर्त के इस जनपद में, ब्राह्मणत्व नये सिरे से परिभाषित हुआ है । जो ब्रह्म को जाने, वही ब्राह्मण । 'ईशावास्यमिदं सर्वम्': सर्व के भीतर वही एक परब्रह्म ईश व्याप्त है। इसी से यहाँ अहिंसा का महामंत्र उच्चरित हुआ : ‘मा हिंस्याः '। इस पूर्वांचल में वेद-पुरुष की नूतन परम्परा प्रकाशमान हुई है । विश्वामित्र, देवापि, जनमेजय, अश्वपति कैकेय, प्रवहण जैबलि,
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