Book Title: Anekant 1991 Book 44 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 21
________________ धवल पु. ४ का शुद्धिपत्र पृष्ठ पंक्ति प्रत्तरांगल २६६१२ xx अशुद्ध शुद्ध ८५२५६५२००० ८१८५८३५५२००० -प्रत्तरागल ३६६१२ १०८+५०० १०८४५०० E२०००० हजार योजन २०००० योजन उत्तर और दक्षिण सम्बन्धी पूर्व व पश्चिम सम्बन्धी दोनो ही पार्श्वदोनों ही पार्श्वभागों में भागों मे [देखो-त्रि. सा. पू. १५० अनु० भा० विशुद्धमती जी] पूर्व और पश्चिम दक्षिण और उत्तर पूर्व और पश्चिम में दक्षिण और उत्तर मे [देखो त्रि.सा.पु. १५० अनु. आ. विशुद्ध] उत्तर और दक्षिण मे पूर्व से पूर्व और पश्चिम पार्श्वगुगलो में पश्चिम तक [देखो त्रि. सा. १३२, १३६] १३४७-६१९१४१४१२७४ १३४७%D६१; १६+१२२८, २८:२ =१४,६१X१४=१२७४ पूर्व और पश्चिम दक्षिण और उत्तर (त्रि. सा. १३४) पूर्व और पश्चिम मे दक्षिण और उत्तर की अपेक्षा पूर्व और पश्चिम दक्षिण व उत्तर[देखो-त्रि.मा. १३७ सं.टीका १८-१६ २४-२५ ३१९८००००.१७८३६ ३४ ३४ २२ ७४४+३ X २४+६=७५० ७५०-७२ = 5 १३४ छठवीं पृथिवी के प्रति समय में मरने वाली राशि को यह युक्ति से कहा है। वास्तव मे तो विग्रहगति में मुखविस्तार से करना संग्रहीत तिर्यम्च पर्याप्त मिथ्यावृष्टि तिर्यञ्च पर्याप्त जीव पर्याप्त जीव तिर्यग्लोक जीवराशि हुई, ३१६८०००० , १७८३६ ३४३ , ३४३ (७४४४२४)+(३४२४)+६=७५० ७५०-७२%६७५, ६७८-१२पर १३७ छठी पृथिवी के प्रथम पृथ्वी के द्रव्य को (देखो-ध ७।२०२) xxxxx विग्रहगति मे मुखविस्तार से गुरिणत करना संगृहीत तिर्यञ्च मिथ्यावृष्टि तिर्यञ्च जीव जीव तिर्यग्लोक जीवराशि है [उपपाद राशि का संचय एक समय मे होता है [देखो, ध. ७।३०७]

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