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२६६
२०१
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२७३
२७६
२७६
२०६
२७६
पंक्ति
३२
३१
२७
१५
१६
१७
२५
१४
ܐ
२५
२२
१८
१६
२५
२६
२४
२५
१३
१६
२५
X
२
१३
१
१८
१५
१६
२३
२५
२६
तदाफोसणं
X X X X
ऊपके
नहीं होता है ?
संख्यात पनांगुल प्रमाण
अशुद्ध
संख्यात अगुल प्रमाण,
चांगुल बाहुल्यवाला और भवनवासी देवों ने
नौ योजन बाहुल्य द्विदोत
भीतर ही होने
साधर्म
(४)
पृथिवों
विशेष
० ४ का शुद्धिपत्र
एथ वि
राजुप्रतको
दर्शना
सासादन सम्यग्दृष्टि
मनुष्यों का उत्पन्न
सम्यदृष्टि
भी ओघपना
चाहिए। तिर्यग्लोक के
भागो चेव
वैकविकमित्रका जो का
मिथ्यादृष्टि
अर्थात
अर्थात
आदेश मार्गणा के अन्तर्गत वेदप्ररूपणा मे
शुद्ध
तदा फोसणं ?
१. प्रतिषु " मारणं" इति पाठः । ऊपर के
नहीं होता है ?
X X X X
सख्यात घनांगुल प्रमाण
अंगुल बाहुल्य वाला ऐसा व्यतरवासी देवो ने
[क्योकि पृ. २३० को द्विचरमपंक्ति से
व्यन्तरदेव प्रकृत हो गये है ।]
नौ सौ योजन बाहल्य
द्विदोत
भीतर होते
साधर्म्य
(३)
(४)
पृथिवी
विशेष
सासादन सम्यग्दुष्ट मनुष्यों में उत्पन्न
सम्यग्दृष्टि
भी इनके ओपना
चाहिए; क्योकि तिर्यग्लोक के
भावे चैव
किविष्टि
जीवों का
एत्थ वि
११
राजुप्रतर को
वर्शाना
मिध्यावृष्टि
अर्थात्
अर्थात्
' आदेशमार्गणा के अन्तर्गत यहां वेदप्ररूपणा मे" [नोट-कोई अर्थान्तर न समझ ले इस दृष्टि से ]