Book Title: Anekant 1991 Book 44 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 126
________________ सहा १६, वर्ष ४४, कि०४ अनेकान्त की और "शासनचतुस्त्रिंशतिका" की रचना की जिसमे यं-यं दुष्टो न हि पश्यति'.... आठवें छव में पूर्व दिशा अपनी दुर्बलता को स्वीकार करते हुए आद्य छंद लिखा है- के पार्श्वनाथ का उल्लेख है। शासनचतुस्त्रिंशतिका य-यः पूर्व भवनक मण्डनमणि..... नवे छद मे वेत्रवती यत्पापवासाद्वालो यं ययो सोपाश्रय स्मय । (वेतवा) के तट पर स्थित शान्तिजिन का उल्लेख है शु(शो)क्ष्यत्यसो यतिजैनभूच श्रीपूज्यसिद्धयः ॥१॥ सम्भवतः बजरगगढ़ या अहार क्षेत्रके शांतिनाथ हो। इस अनुष्टुप् छन्द के एक-एक अक्षर से प्रारम्भ करते यो-योगा: यं परमेश्वर हि कपिल..'दशवे छद मे योगों "शासन चस्त्रिशतिका" के शेष तेतीस छन्दों की रचना की (कापालिको) का उल्लेख है। है अंत में मालिनी छंद मे प्रशस्ति स्वरूप आत्म परिचय सो-सोपानेषु सकपट मष्ट ..११वे छंद मे सम्मेदशिखर दिया है से निर्वाण प्राप्त बीस तीर्थंकरों का उल्लेख है। इति हि मदनक तिश्चिन्तयन्नाऽमचित्ते, पा-पाताले परमादरेण परया १२वे छद में पुष्पपुर विगलति सति रास्तु र्यभागाभागे । (पटना) के पुष्पदन्त का उल्लेख है । कपट शतविलासान् दुष्टवागान्धकारानू, स(था)-स्रष्टेति द्विजनायकहरिरिति १३वें छद मे जयात विहरमाणः साधुराजीव बन्धुः ।।३।। नागदह के पावं का उल्लेख है। प्रथम श्लोक के प्रत्येक अक्षर से प्रारम्भ होने वाले य-यस्याः पाथसिनामविंशति भिदा १४वें छंद मे सम्मेशेष तेतीस छदों के विषय मे श्री सोमदेव ने 'यशस्तिलक- दगिरि की अमृतवापी का उल्लेख है। चम्पू मे लिखा है - स्म-स्मार्ता पाणिपुटोदनादन मिति १५वे छद मे वेदात अग्रेतन वृत्तानाम द्याक्षरः निर्मितः श्लोकोऽयम् । वादियो का उल्लेख है। यः पापनाशाय यतते सयतिर्भवेत् ॥७१४४ य:-यस्य स्नानपयोऽनुलिप्तमखिल १६वे छद मे पश्चिम यहां हम इसी के स्पष्टीकरण हेतु लिखते हैं-किस सागर के चन्द्रप्रभु का उल्लेख है । अक्षर से कौन-सा छद प्रारम्भ होता है तथा उसमें किस शु(शो)-शुढे सिशिला तले सुविमले...१७वें छद मे क्षेत्र का वर्णन है ? ये सभी छद संस्कृत के शार्दूलविक्री- छाया पार्श्वप्रभु का उल्लेख है । डित छंद है क्ष-क्षाराम्भोधिपयः मुधाद्रवइव १८वें छन्द में पांच मो यत्--यद्दीपस्यशिखेव..... प्रथम छद इसमें कैलासभत्र धनुष प्रमाण आदिनाथ का उल्लेख है। ___का उल्लेख है। ति-तिर्यञ्चोऽपिनमन्तियं निजशिरा...१९वें छन्द मे पा-पादाङ्गुष्ठ नन प्रभासु..." द्वि० छंद में पोदनपुर पावापुर के महावीर का उल्लेख है। के वाहुवली का उल्लेख है। सौ-सौराष्ट्र यदुवंशभूषण मणे:.."२०वें छन्द में गिरनार प.-पत्र यत्र विहायसि..."त. छंद में श्रीपर (शिरपूर) के नेमिनाथ का उल्लेख है। के अतरीक्ष पवनाथ का उल्लेख है। य-यस्याऽद्याऽपि सुदुन्दुभिश्वरमलं'. २१वें छन्द में चंपावास-बास सार्थपतेः पुरा...."चतुर्थ छंद में हुलगिरि के पुर के वासुपूज्य का उल्लेख है । शखजिन तीर्थ का उल्लेख है। ति-तिर्यग्वेषमुपास्य पश्यततपो...२२वें छन्द मे वैशेषिकों सा--सानन्दं निधयो नवाऽपि ..... पंचम छंद में धारा के का उल्लेख है। पाश्वनाथ का उल्लेख है। जै-जैनाभासमतं विधाय कुधिया. २३वें छन्द मे श्वे. ताम्बरों का उल्लेख है। द्वा-द्वापंचाशदननपाणि परमो-छठे छंद में वहत्पुर के न-नाभतं किलकर्म जालमसकृत "२४वं छन्द मे शैवो ५७ हाथ ऊँचे वृहदेव का उल्लेख है। का उल्लेख है। लो-लोकः पचशतीमितरविरतं.... सातवें छंद में जैन- म्-मूर्तिः कर्मशुभाशुभं हि'२५वें छन्द में सांख्यों का पुर (जैनवद्री) के गोम्मटदेव का उल्लेख है। उल्लेख है।

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