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जैन यक्ष-यक्षी प्रतिमाएँ
0 श्री रामनरेश पाठक
शासन देवता समूह में २४ यक्षों और उतनी ही त्रिमंग मुद्रा में परिचारिका, चांवरधारिणी सुशोभित है। यक्षियों की गणना है। ये यक्ष और यक्षी तीथंकरों के रक्षक बांया हाथ कट्यावलम्बित है। दोनों पार्श्व में अंजली हस्त कहे गये हैं। तीर्थकर प्रतिमाओं के दायें ओर यक्ष और मुद्रा में भू-देव और श्रीदेवी का आलेखन है । १०वीं शती बायें ओर एक यक्षी की प्रतिमाएं बनाये जाने का विधान की यह प्रतिमा काफी भग्न अवस्था में है। कलात्मक है। पश्चातकाल में स्वतंत्र रूप से भी यक्ष-यक्षियों की अभिव्यक्ति की दृष्टि से मूर्ति उत्तर प्रतिहार कालीन प्रतिमाएं बनाई जाने लगी थी। यद्यपि तांत्रिक युग के शिल्प कला के अनुरूप है। प्रभाव से विवश होकर जैनों को इन देवों की कल्पना गोमेघ अम्बिकाबाईसवे तीर्थंकर नेमिनाथ के करनी पड़ी थी किन्तु इन्हें जैन परम्परा में सेवक या रक्षक शासन यक्ष-यक्षी गोमेघ अम्बिका की प्रतिमा ग्वालियर दुर्ग का ही दर्जा मिला है न कि उपास्य देव का यक्ष-यक्षियों से प्राप्त हुई है। (सं. क्र. २६४) गोमेघ अम्बिका सव्य प्रतिमाएं सर्वांग सुन्दर सभी प्रकार के अलंकारों से युक्त ललितासन मे बैठे हुए है। गोमेध की दायी भुजा एवं मुख बनाने का विधान है। करण्ड मुकूट और पत्र कृण्डल भग्न है। बायी भुजा से बायीं जघा पर बैठे हए बालक धारण किये प्रायः ललितासन में बनायी जाती है। केन्द्रीय जेष्ठ पुत्र शुभंकर को सहारा दिये है। बालक का सिर संग्रहालय गूजरी महल ग्वालियर में प्रथम तीर्थकर आदि- भग्न है । वे मुक्तावली एवं केयुर धारण किये है। अंबिका नाथ एवं बाईसवें तीर्थकर नेमिनाथ के यक्ष-यक्षियों की की दायीं भुजा मे स्थित आम्बलुम्बी भग्न है। बायीं भजा चार प्रतिमाएं संरक्षित हैं । जिसका विवरण निम्नलिखित से बालक कनिष्ट पुत्र प्रियंकर को सहारा दिये हए है।
देशी आकर्षक केश, चक एवं पम कुण्डल, मुक्तावली, गोमुख यक्ष-प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ के शासन उस्बन्ध, बलय व नूपुर धारण किए है। देवी का दायाँ देवता की गंधावल जिला देवास मध्य प्रदेश से प्राप्त गो-पैर पप पर रखे हुए है । बायें पार्व में बाम्बलुम्बी नाशिक मुख यक्ष का मुख पशु आकार (गोववत्रक) और शरीर रूप से सुरक्षित है। उसके नीचे एक पुरुष अंकित है, मानव का है। (सं. क्र. २३०) अप सव्य ललितासन में जिसकी दायी भुजा भग्न है। बायी भुजा कट्यावलम्बित बैठे हुए शासन देव की दायीं नीचे की भूजा भग्न है । दायी है। पादपीठ पर दोनो ओर दो कुन्तलित केश युक्त ललिऊपरी भुजा में गदा, बायी ऊपरी भुजा में परशु व नीचे तासन में दो प्रतिमा अंकित है जिसकी दायी भुजा अभय की भूजा में बीजपूरक लिए है । यक्ष आकर्षक करण्ड मुकुट मुद्रा में बायीं, बायें पैर की जघा पर है। मध्य में दो मुक्तावली, उरुबन्ध, केयूर, बलय, मेखला से सुसज्जित है। योदा युद्ध लड़ रहे है। राजकुमार शर्मा की सूची में इस कलात्मक अभिव्यक्ति ११वीं शती ई. परमार युगीन शिल्प मति को स्त्री-पुरुष दो बालक लिखा हुआ है। ११वी कला के अनुरूप है।
शती ई० की यह मूर्ति कच्छपधात युगीन शिल्प कला के चक्रेश्वरी-प्रथम तीर्थंकर ऋषभनाथ को शासन अनुरूप है। यक्षी चक्रेश्वरी की ग्वालियर दुर्गसे प्राप्य मानवरूपी गरुड़ अम्विका -बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ के शासन पर सवार है, सिर एवं ऊपर के दो हाथ खंडित हैं। (सं. यक्षी अम्बिका की तुमेन जिला गुना मध्यप्रदेश से प्राप्त क्र. ३०५) नीचे के दो हाथ आंशिकरूप से सुरक्षित हैं। हुई है। (स. क्र. ४६) सव्य ललितासन मे सिंह पर बैठी दोनों ओर दो चक्र बने हुए हैं, यक्षी एकावली, हार, उरु- हुई है। बायीं जंषा पर लघु पुत्र प्रियंकर खड़ा हुआ है। बंध, केयूर, बलय, मेखला पहने हुए हैं एवं पैरों में अधो- दायें और ज्येष्ठ पुत्र शुभंकर खड़ा हुआ है। देवी दायीं वस्त्र धारण किये हुए हैं । गरुड़ के सिर पर आकर्षक केश, भुना आम्रलम्बी लिए है एवं बायीं भुजा से अपने लष चक्र कुण्डल, हार मेखला पहने हुए है। दोनों पारवं में
(शेष पृ० २० पर)