Book Title: Anekant 1991 Book 44 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 91
________________ तीराज सम्मेदशिखर- इतिहास के पालोक में शिरविना महापूजा, सम्मेदशिखर यात्रा दर्शन, सदणिसर विलास, सम्मेद विलास व्यादि विभिन्न नामोटो पापियां मिलती है। ये पाण्डुलिपि बहमपूर्ण या प्रकाशन योग्य हैं । जिन कवियो पूजा विकास को रचनाये लिखो उनमें कवि द्यान्तराग बुभन भागीरथ, जवाहरलाल, भ० सुरेन्द्रकोर्ति, गंगादास गे। राम, हजारी मल्ल, ज्ञानचन्द्र, लालचन्द्र, मोतीराम, मनसुखसागर, दीक्षित देवदत्त, सतदाम, रामनन्द, केहि देवाब्रह्म, गिरधारीलाल, भागचन्द के नाम उल्लेखनीय है। इन सभी कवियो की पूजायें, विनास गावान शिखर जी के इतिहास के लिए बहुत उत्तम सामग्री युक्त है । इनका प्रकाशन यदि दोनो ही कोठियो की ओर से अथवा तेरहपंथी कोठी की ओर से हो जावे तो परम पूज्य उपाध्याय ज्ञानसागर जी महाराज का शिखर जी की यात्रा ऐतिहासिक यात्रा बन जायेगी । आशा है तीर्थराज कमेटी का इस ओर अवश्य ध्यान जावेगा ।" विलाम इतिहास की दृष्टि से बहुत ही अच्छी रचना है। जिसमे १५० छंद है। संवत १८६६ में प्रतापगढ़ (राज) के टेकचन्द ने सम्मेद शिखर जी की यात्रा की थी तब रामपाल ने शिखर जी की लिखी थी। पूजन शिखर जी के इतिहास के स्तोत्र और भी है। भट्टारक विद्यानंद (१४१४-१५३६) ने भी शिखर जी की वंदना की थी तथा भ० सोमसेन के शिष्य जिनसेन ने भी शक संवत १६०७ में शिखर जी की वंदना करने का यशस्वी कार्य किया था । १२वीं शताब्दी में होने वाले ब्रह्मजिनदास ने भी अपने जम्बूस्वामी रास एवं रामरास में सम्मेद शिखर जी का निम्न प्रकार वर्णन किया है :--- सम्मेव गिरि दीणे वलि चंग, जिनवर बीस पूज्या मनरंग ।। पूजा विलास की रचनायें : सम्मेद शिखर हमारा पावन तीर्थ है। मन्दिरों में राजस्थान के जैन शास्त्र सम्मेदाचल पूजा, मम्मेद उसकी पूजा होती रहती है भारों में सम्मेद शिखर पूजा, ( पृ० १८ का शेषाण) नेमिनाथ- राजुल प्रसंग पर जैन कवियों ने पर्याप लिखे हैं । नेमिनाथ के शक्ति परीक्षण, दया, विरक्ति औ तप आदि गुणों पर बालकृष्ण की राजमती ने भी अपनी श्रद्धा व्यक्त की है छवि नेमि पिया की लखि कं मुसकानी । भावत सुंदर मूरत देखत, राजमती सकुचानी । नाम सेज पर नाक चढ़ावत, देख सबै मनमानी । जोरि जॉन ब्याहन को आये, कहि न सके कोई प्यानी तोरो हार बसन सब भूषन, जीव दया मनमानी । ग्रह तजि के गिरि ऊपर पहुंचे, मेरी बात न मानी। 00 १७ तप कर कर्म सबै जिन नासं, भये निरंजन ज्ञानी । प्रभु के गुन सब तीन लोक में, सुनत पाप नसांनी । 'बालकृष्ण' की वीनती सुनीये, वीजं भक्ति निशांनी ॥ उक्त विवचन के आधार पूर्ण अज्ञात कवि हितकर और बालकृष्ण जैन भक्ति परम्परा के श्रेष्ठ भक्त ज्ञात होते हैं। अधिक पद होने की सम्भावना से इंकार नही किया जा सकता । एसोसिएट प्रोफेसर राजकीय स्वायत्तशासी जया विद्यालय भरतपुर (राज० )

Loading...

Page Navigation
1 ... 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146