Book Title: Anekant 1991 Book 44 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 111
________________ malurunwITATION PIRE V VA - परमागमस्य बीजं निषिबजात्यन्धसिन्धुरविधानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमयनं नमाम्यनेकान्तम्॥ वर्ष ४४ वोर-सेवा मन्दिर, २१ दरियागंज, नई दिल्ली-२ वीर-निर्वाण संवत् २५१८, वि० सं० २०४८ अक्टूबर-दिसम्बर . १९९१ जिनवाणी-महिमा मित पोजो धो-धारी। जिनवानि सुधालय जानके नित पीजो घो-धारी॥ वोर-मुखारविन्द ते प्रगटी, जन्म जरा गव-टारी । गौतमाविगुरु उर घट व्यापी, परम सुरुचि करतारी॥ ससिल समान कलित, मलगंजन, बुध-मन-रंजनहारी। भंजन विभ्रमधलि प्रमंजन, मिथ्या जलद निवारी॥ कल्यानकतर उपवन धरनो, तरनी भवजल-तारी। बन्धविवारन पैनो छैनी, मुक्ति नसैनी सारी॥ स्वपरस्वरूप प्रकाशन को यह, मान-कला अविकारो। मुनिमन-कुमुदिनि-मोबन-शशिमा, शम सुख सुमन सुवारी॥ जाको सेवत, बेवत निजपद, नसत अविद्या सारी। तीन लोकपति पूजत जाको, जान विजग हितकारी॥ कोटि जोभि सौ महिमा जाको, कहि न सके पविधारो। 'दौल' अल्पमति केम कहै यह, अधम उधारन हारी॥ 卐

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