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अतिशय क्षेत्र प्रहार के जैन यन्त्र
इसी प्रकार एकम तिथि का उल्लेख किया है । इस यन्त्र का व्यवहार हुआ है। देशी बोली में प्रयुक्त फानुन शब्द लेख का उल्लेख 'प्राचीन शिलालेख' पुस्तक मे लेख नम्बर का व्यवहार भी उल्लेखनीय है । १२८ से हुआ है। शक सम्वत होने से यह लेख विक्रम भावार्थ-सम्बत् १६८३ के फाल्गुन सुदी तृतीया के सम्वत् १७४२ का ज्ञात होता है। लेख निम्न प्रकार है- दिन श्री धर्मकीत्ति के उपदेश से श्रष्ठ भट्टारक किशुन के मूलपाठ
पुत्र मोदन, श्याम, रामदास, नन्दराम, सुखानन्द और भग१. शके (शक सम्बते) १६०७ मार्गसिर (मार्गशीर्ष) वानदास तथा उसके पुत्र आशाजात, श्रीराम, दामोदर, शुक्ल १० बुधे श्री मलसघे सरस्वतीगछे (गच्छे) वला- हिरदेराम, किशुनदास और वैशाखनन्दन के परिवार ने स्कारगणे कंदकुंदाच्चर्यो (चार्यो) भट्रारक श्रीविशालकी- प्रतिष्ठा कराई। वे सब इस यन्त्र को नमस्कार करते हैं। त्तिस्तत्पी भट्टारक श्री पद्मकीत्तिस्तयोः उपदेशान् ज्ञानी- प्राचीन शिलालेख पुस्तक मे इसका लेख नम्बर १२७ है। (सी) छी (छि)
(२४) सोलहकारण यन्त्र १. तवान् नीवन कारे सेमवा भार्या निवाउभागाइर
यह यन्त्र ७.३ इच गोल ताम्र फलक पर उत्कीर्ण है। नयो. पुत्र यादोजी भार्या देवाउ प्रणमंती-(ति) ।
यन्त्र का भाग कुछ ऊपर उठा हुआ है। दो पक्ति का पाठ टिप्पणी
निम्न लेख हैदुमरी पंक्ति मे मीवनकार विशेषण शब्द है जिसका
१. संवत् १७२० वर्षे फागुन (फाल्गुन) सुदि १० शुक्र अर्थ सम्भवतः मिलाई करने वाला है।
श्री व० (वलात्कारगणे) म० (मूलसघे) स० (सरस्वतीभावार्थ---शक मम्बत् १६०७ के अगहन मास के
गन्छे) कुंदाकुंदाचार्यान्वये भ० भट्टारक) श्री सकलकोत्तिशुक्ल पक्ष की १०वों बुधवार के दिन मूलसंघ सरस्वती
उपदेशात् गोलापूर्वान्वये गोत्र पेथवार प० (पण्डित) वसेगच्छ बलात्कारगण और आचार्य कुन्दकुन्द की आम्नाय दास भा० (भार्या) परवति (पार्वती) तत्पत्र ५ जेष्ट के भट्रारक विशाद कीति तथा उनके पट्ट पर बैठने वाले डोगरूदल, विस(शु)न चन-उग्रसेनि नित्यं प्रनमम
ति इन दाना उपदेश इपानिया में सुशाभित २. ति सि. (सिधई) ष(ख) रगसेनिक यन्त्र प्रतिष्ठासिलाई करके जीविका करने वाले सेमवा और उसकी मैइयत्र प्रतिष्ठित ।। सुष(ख)चन ॥ पत्नी निवाउ भागा इन दोनों का पुत्र यादोजी और पुत्रवधू
पाठ टिप्पणी देवाउ प्रणाम करते है। (२३) तेरहविधचारित्र यंत्र
इस यन्त्र मे व, म, स, भ, भा, सि. शब्दो के प्रथम यह यन्त्र ताम्र धातु से ६ इंच की गूलाई में निर्मित वर्ण देकर शब्दों के सक्षिप्त रूप दर्शाये गये हैं। पूर्ण शब्द है। यन्त्र के बाह्य भाग में दो पंक्ति का संस्कृत भाषा लेख मे सक्षिप्त वर्गों के आगे कोष्टक मे लिखे गये है। और नागरी लिपि में निम्न लेख अकित है
श के स्थान में 'स' तथा ख स्थान मे 'ष' वर्ण व्यवहत १. संवत् १६८३ फागुन (फाल्गुन) सु० (सुदि) ३ हुए है। श्री धर्मकोत्ति उपदेशात् समुकुट भ० (भट्टारक) किसुन भावार्थ-मूलसघ वलात्कारगण सरस्वतीगच्छ (किशुन) पुत्र मोदन स्याम (श्याम)-रामदाम-नंदराम-सुषा कुन्दकुन्दाचार्याम्नाय के भट्टारक सकलकीर्ति के उपदेश से (खा)नंद-भगवानदास पुत्र आमा(शा)
गोलापूर्व पेयवार गोत्र के पण्डित वसेदास और उनकी २. जात सि......(साराम) द (दा)मोदर-हिरदेशम पत्नी पार्वती के पांच पुत्रों मे ज्येष्ठ डोंगर, ऊदल, विशुनकिसु(शु)नदास-वैसा(शा)ष(ख) नंदन परवार/एते नमंति। चैन, उयसेन और सुखचन ने सम्वत् १७२० मे फाल्गुन पाठ टिप्पणी
सुदी १०वीं को सिंघई खरगसेन की यत्र प्रतिष्ठा में इस इस यन्त्र लेख में सुदि शब्द के लिए सु०, भट्टारक के यन्त्र की प्रतिष्ठा कराई। वे यन्त्र को नित्य नमस्कार लिए भ०, खवर्ण के लिए 'ष' तथा 'श' के लिए स वर्ण करते हैं ।