Book Title: Anekant 1991 Book 44 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 120
________________ m; कि.. अनेकान्त (१९) पंचपरमेष्ठी यन्त्र जीत देवराज्योदयात् जात (जाति) गोला पूरब बैंक ष(खु) यह यन्त्र पीतल धातु के वर्तुलाकार | इंच के एक रदेले मनीराम तत भार्या मोनदे तयोः पुत्र..... फरक पर उत्कीर्ण है। नीचे संस्कृत भाषा और नागरी ३. जेष्ट (ज्येष्ठ) पुत्र लले भार्या भगुती तयोः पुत्र-३ मिपि मे चार पंक्ति का निम्न लेख अंकित है दीपसा................."दुतिय पुत्र उमेद भार्या स्याभेतयो: १. संवत् १९५६ श्री........"(शुभ नाम समये वर्ष) पत्र-४ सवसष (ख) दुलारे तडावत लाडिले नित्य प्रन(ण) फागुन मासे सुक्ल (शुक्ल) पक्षे तिथि १०मी गुर (गुरु) मति (मंति)। वासरे पुष (पूष्य) नक्षत्र श्री मूलसंघे बनात्कारगने (ण) इस लेख मे ख वर्ण के लिए 'ब' वर्ण का प्रयोग हुआ २. सरस्वतीगछे (गच्छे) कुंदकुद आचार्यान्वये श्रीमत् है। श के स्थान स का प्रयोग भी द्रष्टव्य है । सा (शा) स्त्रोपदेशात् जिनविंव जत्रोपतिष्ठतं परगनी (१९) दशलक्षण धर्म यंत्र मोड्छौ नम वांध (बंधा) श्री महाराजाधिराज श्रीमहाराजा यह यंत्र पीतल धातु के ६.५ इंच वर्तुला कार एक ३. श्री महेंद्र महाराजा (1) विक्रमाजीत राज्योदयात्। ज्यादयात् फलक पर उत्कीर्ण है। यत्र पर निम्न लेख भी कित हैज्यात (जात) गोलापूरब बैक षु(ख)रदेले मनीराय तत् सवत् १८५६ श्री सुव (शुभ) नाम समए (ये) वषे प्राता मौनदेतवो पुत्र २ जेष्ट पुत्र खले भार्या भगतो तयो (वर्षे) नाम फाल्गुन (ण) मासे टू (शुक्ल पक्षे तिथौ १० । पुत्र-२ दीपसा लारसा झुतारे गुरुवासरे श्री मूलसघे वलात्कारगने (णे) सरस्वतीगर्छ ४. दुतीय पुत्र उमेद भार्या स्याणे (सयानी) तयोः पुत्र 1) तयाः पुष (च्छे) श्री कुदकुदाचाज(य)न्वये श्रीमत सा(शा स्त्रोपदेशात् ४ एवसुष (ख) दुलारे गुडारात लाडेले नित्य प्र-(ण)मति । श्री जिनविव जत्रो पतिष्ठत (प्रतिष्ठित) नन...." इस यन्त्रलेख में 'ख' वर्ण के लिए 'ष' वर्ण का प्रयोग ......... - नित्यं प्रन(ण)मति । हुआ है प्रस्तुत लेख में आये मनीराम का नामोल्लेख (२०) दशलक्षणधर्म यंत्र सोनागिरि मे संवत १८५३ के एक हिन्दी शिलालेख को यह यन्त्र पोतल धातु से निर्मित ८.५ इच के वर्तला सातवीं पंक्ति मे भी हुआ है। दोनों नाम अभिन्न ज्ञात कार एक फलक पर उत्कीर्ण है। नीचे निम्न लेख हैहोते हैं। सवत् १९६६ फाल्गुन सु(शुक्ल ११ प्रतिष्ठत नग्र (१७) सोलहकारण यंत्र सरकनपुर मध्ये माधो सेठ मूलचद पलए। यह यन्त्र पीतल के १.६ इची गोल फलक पर उत्कीर्ण (२१) सिद्धचक्र यंत्र है। यन्त्र के नीचे निम्न लेख है पीतल धातु से निर्मित ७.३ इच के वर्तुलाकार एक संवत् १६६६ फाल्गुन मासे कृष्ण पक्षे प्रतिष्ठतं नग एक फलक पर उत्कीर्ण इस यन्त्र के नीचे दो पक्ति का (नन) सरकनपुर मध्ये माथे सेठ मूलचं-(द) पलए। लेख है(१८) सोलहकारण यंत्र १. संवत् १९८१ जेष्ठ (ज्येष्ठ) कृष्ण १० को सेठ पीतल धातु के गोल ६ इंच के एक फलक पर उत्कीर्ण पल्टूलाल श्री कुंदकुंदाचार्यान्वये................" इस यन्त्र पर तीन पंक्ति का एक लेख अकित है ... ... ... ... ... .""सरकनपुर "" १. सवत् १८५६ श्री सुव (शुभ) नाम समये वषे (२२) अष्टांग सम्यग्दर्शन यंत्र (वर्षे) फाल्गुन मासे सुक्ल (शुक्ल) पक्षे तिथ (थि) १० यह यन्त्र ५.३ इंच के वर्तुलाकार पीतल धातु के एक दसमी गुर (रु) बासरे श्री मूलसंघे वलात्कारगने(णे) सर- फलक पर निर्मित है। अहार क्षेत्र में प्राप्त यन्त्रो मे एक स्वतीगच्छे श्री कुंदकुद आचार्य(य)-वये श्रीमत् मात्र यही यन्त्र है जिसमें ४क सम्वत् का प्रयोग हुआ है। २. सा (शा) स्त्रोपदेशात् श्री जिनविब जंत्रो पतिष्टतं श्री गोविन्ददास कोठिया ने इस यन्त्र का सम्वत् विक्रम (प्रतिष्ठतं) परगनो जोडछो नन बाध (बधा) श्री महा- सम्बत् बताया है। उन्होंने सम्वत् सूचक अंकों मे शून्य को राजाधिराजा श्री महाराजा श्री महेंद्र महाराजा । विक्रमा- सात अंक मानकर इस यन्त्र का सम्वत् १६६७ माना है।

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