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बर्ष ४४,कि. ४
अनेकान्त
पत्र नन्न ने अपभ्रंश भाषा मे रचित 'महापुराण' के महा- है कि अनुश्रुतियों के अनुसार इस वंश का प्रादिपुरुष कवि पुष्पदन्त को आश्रय दिया था। कवि ने लिखा है कि कीर्तिवीर्य था, जिसने जैन मुनि के रूप म तपस्या करके नन्न जिनेन्द्र की पूजा और मुनियो को दान देने में आनंद कर्मों को नष्ट किया था। 'कल' शब्द का अर्थ कर्म भी है का अनुभव करते थे। कवि पुष्पदन्त ब्राह्मण थे किन्तु मुनि और देह भी। अतएव देहद नन द्वारा कर्मो को चूर करने के उपदेश से जन हा गए थे। उन्होंने सल्लेखनाविधि से वाले व्यक्ति के वशज कलचुरि कहताये। इस वश मे शरीर त्यागा था।
जैनधर्म की प्रवृत्ति भी अल्पाधि बनी रही। प्रो. रामा खोट्रिग नित्यवर्ष (६६७-६७२ ई. ने शान्तिनाथ के स्वामी आय्यगर आदि अनेक दक्षिण भारतीय इतिहासनित्य अभिषेक के लिए पाषाण की सुन्दर चोको समर्पित कारो का मत है कि पांचवी छठी शती ई. में जिन शक्तिकी थी ऐसा दानवलपाडु के एक शिलालेख से ज्ञात होता शाली कलभ्रजाति के लोगो ने तमिल देश पर आक्रमण और उसी के समय मे ६७१ ई. मे राजरानी आयिका करके चोड, चेत पारेको को पराजित करके पम्वन्वे ने केशलोंच कर पायिका दीक्षा ली थी और तीस । उक्त समस्त प्रदेश पर अपना शासन स्थापित कर लिया वर्ष तपस्या कर समाधिमरण किया था।
था वे प्रतापी कलभ्र नरेश जैनधर्म के पक्के अनुयायी थे। गोम्मटेश्वर महामूर्ति के प्रतिष्ठापक वीरमार्तण्ड यह सम्भावना है कि उत्तर भारत के काचुरियो की ही
ण्डराय एव गगनरेश मारसिंह जब अन्य स्थानों पर एक शाखा सुदूर दक्षिण मे कलभ्र नाम से प्रसिद्ध हुई युद्धों मे उलझे हुए थे तब मालका के परमार सिपक ने और कालान्तर में उन्ही कल भ्रो की सन्तति मे कर्नाटक के मान्यखेट पर आक्रमण किया जिसमे खोट्टिग मारा गया।
कलचुरि हुए। उसके पुत्र को भी मारकर चालुक्य तैलप ने मान्यखेट पर
___आयंगार के ही अनुसार, कलचुरि शासक विज्जल अधिकार कर लिया।
भी "अपने कुल को प्रवृत्ति के अनुसार जैनधर्म का अनुकृष्ण तृतीय के पौत्र और गगनरेश मारसिंह के भान्जे
यायी था। उसका प्रधान सेनापति जैनवीर रेचिमय था। राष्ट्रकूट वंशी इन्द्र चतुर्थ की मारसिंह ने सहायता की,
उसका एक अन्य जैन मन्त्री ब्रह्म बलदेव था जिनका उसका राज्याभिषेक भी कराया। श्रवणबेलगोल के शिला
जामाता बामवनी जैन था।" इसी बामव ने जैनधर्म लेखानुसार, मारसिंह ने ६७४ ई. मे बकापुर में समाधि.
और :न्य कुछ धर्मों के सिद्धान्तो को सममेलित कर 'वीरमरण किया। इन्द्रराज भी ससार से विरक्त हो गया था
शैव' या लिंगायत' मत चलाया (इस आशय का एक पट्ट
या लिगायत' 1 am और उसने भी ९८२ ई. में समाधिमरण किया। इस भी कल्याणी' के मोड पर लगा है। देखिए जैन राजधानी प्रकार राष्ट्रकूट वंश का अन्त हो गया। इस वंश के समय
___ 'कल्याणी' प्रकरण)। जो भी हो, विज्जल और उसके में लगभग २५० वर्षो तक जैनधर्म कर्नाटक का सबसे
वशजो ने इस मत का विरोध किया। किन्तु वह फैलता प्रमुख एवं लोकप्रिय धर्म धा।
गया और जैनधर्म को कर्नाटक में उसके कारण काफी कलचुरि वंश :
क्षति पहुंची। कहा जाता है कि विज्जल ने अपने अन्त चालक्य वश के शासन को इस वश के विज्वल कल- समय मे पुत्र को राज्य सौप दिया और अपना शेष जीवन चरि नामक चालुक्यों के ही महामण्डलेश्वर और सेनापति धर्म-ध्यान मे बिताया। सन् ११८३ ई. में चालुक्य सोमेने ११५६ ई. में कल्याणा से समाप्त कर दिया। लगभग श्वर चतुर्थ ने कल्याणी पर पूनः अधिकार कर लिया और तीस वर्षों तक अनेक कलचुरि राजाओं ने कल्याणी से हो इस प्रकार कलचुरि शासन का अन्त हो गया। कर्नाटक पर शासन किया।
___अन्लूर नामक एक स्थान के लगभग १२०० ई. के कलचुरियो का शासन मुख्य रूप से वर्तमान महा- शिलालेख से ज्ञात होता है कि वीरशैव आचार्य एकान्तद भारत, महा कोसल एवं उत्तरप्रदेश में तीसरी सदी से ही रामय्य ने जैनो के साथ विवाद कि- और उनसे ताड़पत्र था। इनके सम्बन्ध मे डा. ज्योति प्रसाद जी का कथन पर यह शर्त लिखवा ली कि यदि वे हार गये तो वे