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कर्नाटक में नर्म
जिनप्रतिमा स्थापित करेंगे। कहा जाता है कि रामय्य ने होयसल वंश की राजधानी सबसे पहले सोसेयूरु या अपना सिर काटकर पूनः जोड लिया। जैनों ने जब शर्त शशकपूर (आजकल का नाम अंगडि) फिर बेलूर और का पालन करने से इनकार किया तो उसने सैनिकों, घड़- उसके बाद द्वारावती या द्वारसमुद्र या दोरसमुद्र में रही। सवारो के होते हुए भी हलिगेरे (आधुनिक लक्ष्मेश्वर) मे अन्तिम स्थान आजकल हलेविड (अर्थात् पुरानी राजजैन मूर्ति आदि को फेंककर जिनमन्दिर के स्थान पर घानी) कहलाता है और नित्य ही बहा संकड़ों पर्यटक वीरसोमनाथ शिवालय बना दिया। जैनो ने राजा विज्जल मन्दिर देखने के लिए पाते है। से इसकी शिकायत की तो राजा ने जैनो को फिर वही इस वश की स्थापना जैनाचार्य सुदत्त वर्धमान ने की शर्त लिख देन और रामय्य को वही करिश्मा दिखाने के थी। होयसलनरेश जैनधर्म के प्रतिपालक थे, उसके प्रबल लिए कहा। जनो ने राजा से क्षतिपूर्ति की मांग की, न पोषक थे। रानी शान्तला तो अपनी जिन भक्ति के लिए कि झगड़ा बढ़ाने की । इस पर राजा ने रामय्य को जय- अत्यन्त प्रसिद्ध है। उसके द्वारा श्रवणवेलगोल में बनवायी दिया। इस चमत्कार की कथनी म विद्वाना का सन्दह हे गयी 'सतिगन्धवारा बसदि' और वहां का शिलालेख
और इसका यही अर्थ लगाया जाता है कि वीरशैव या उसकी अमर गाथा आज भी कहते है । इस वश का इतिलिंगायत मत अनुयायियों न जैनो पर उन दिनो अत्या- हास बड़ा रोचक और कुछ विवादास्पद (सही दृष्टि हो चार किय थे । एक मत यह भी है कि विज्जल भी वासय तो विवादास्पद नही) है। विशेषकर विष्णुवर्धन को लेकर की बहिन भौर अपनी सुन्दर रानी पद्मावती के प्रभाव स तरह-तरह की अनुश्रुतियां प्रचलित है। जो भी हो, होयवीरशव मत की आर झुक गया था किन्तु उसे विषाक्त । सलवश का इतिहास और उससे सम्बन्धित तथ्यों की पास खिलाकर मार दिया गया।
सक्षिप्त परीक्षा इसी पुस्तक मे हलविड' के परिचय के
साथ की गई है। वह पढ़ने पर बहुत सी बातें स्पष्ट हो होयसल राजवंश :
जाएंगी। यह वंश कर्नाटक के इतिहास मे सबसे प्रसिद्ध राज
होयसल का अन्त १३१० ई. मे अलाउद्दीन खिलजी वंश है। इस वश से सम्बन्धित सबसे अधिक शिलालेख
के और : ३२६ ई. मे मुहम्मद तुगलक के आक्रमणो के श्रवणबेलगोल तथा अन्य अनेक स्थानों पर पाये गये हैं।
कारण हो गया। इस वश के राजा विष्णुवर्धन और उसकी परम जिनभक्त,
विजयनगर साम्राज्य (१३३६-१५६५ ई.): सुन्दरी, नृत्यगानविशारदा पट्टरानी शाम्तला तो न केवल
यह हम देख चुके है कि होयसल साम्राज्य का अन्त कर्नाटक के राजनीतिक और धार्मिक इतिहास तथा जन
अलाउद्दीन खिलजी और मुहम्मद तुगलक के आक्रमणो के श्रुतियो मे अमर हो गये है अपितु उपन्यास आदि साहित्यिक
कारण हुआ। मन्तिम होयसलनरेश बल्लाल की मृत्यु के विधाओ के भी विरजीवी पात्र हो गये है। मूडबिद्री के
बाद उसके एक सरदार सगमेश्वर या सगम के दो बेटोंप्राचीन जैन ग्रथो मे भी उसके चित्र सुरक्षित हैं।
हरिहर और बुक्का ने मुसलमानों का शासन समाप्त करने उपर्युक्त वश अपनी अदभत मन्दिर और मूति-निर्माण
की दृष्टि से सगम नामक एक नये राजवंश की १३३६ ई. कला के लिए भी जगविख्यात है। बेलूर, हलेबिड और
मे नीव डाली। उन्होंने अपनी राजधानी विजयनगर या सोमनाथपुर (सभी कर्नाटक मे) के तारों (star) की
(विद्यानगर) मे बनाई जो कि आजकल हम्पी कहलाती है। आकृति के बने, लगभग एक-एक इंच पर सुन्दर, आकर्षक
यह वाल्मीकि रामायण में वर्णित किष्किन्धा क्षेत्रमे स्थित नक्काशी के काम वाले मन्दिरों ने उनके शासन को
है और प्राचीन साहित्य मे पम्पापुरी कहलाती थी। अजैन स्मरणीय बना दिया है। उसके समय की निर्माणशैली
तीर्थयात्री इसे पम्पाक्षेत्र कहते हैं और आज भी बालीअब इस वश के नाम पर होयसल शैली मानी जाती है। सुग्रीव की गुफा आदि की यात्रा करने आते हैं । उसकी पृथक पहिचान है और पृथक् विशेषता ।
(क्रमशः)