Book Title: Anekant 1991 Book 44 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 107
________________ निमित्त और उपादान १. लोगों की भावना तो उत्तम है किन्तु परिणमन पदापों के कारण कूट के मिलने पर होता है। उपादान कारण में ही कार्य की उत्पत्ति होती है। किन्तु सहकारी कारण के बिना उपादान का विकास असम्भव है। (३३८।४७) २. निमित्त के बिना उपादान का विकास नहीं होता। यद्यपि उपादान का विकास निमित्तरूप नहीं परिणमता परन्तु निमित्त की सहकारिता के बिना केवल उपादान कार्य का उत्पादक नहीं। (१९।११।४७) ३. जो काम होते हैं वह होते ही हैं, सामग्री से ही होते हैं। अहम्बुद्धि से आप अपने को सर्वथा कर्ता मानते हैं यही महती अज्ञानता है। यह कौन कहता है कि निमित्त रूप कार्य हुआ परन्तु अपने को सर्वथा कर्ता मानना न्याय सिद्धान्त के प्रतिकूल जाता है। घट उत्पत्ति कुम्भकार आदि के निमित्त से होती है परन्तु पट बना कहाँ ? इसको मत छोड़ दो। तब तुम्हारा निमित्त भी चरितार्थ है। अन्यथा अभाव में संसार भर के कुम्भकार प्रयत्न करें क्या घट बन जावेगा ? मृत्तिका के उपादान वाले यही पाठ घोषणा करते हैं कि मिट्टी ही घट की जनक है, कुम्भकार तो कुम्भकार ही है। तब जगत भर की मृत्तिका का सग्रह कर लो क्या कुम्भकार के बिना घट बन जावेगा? अतः यही मानना पड़ेगा कि घट के उत्पादन में सामग्री कारण है। केवल उपादान और केवल निमित्त दोनों ही अपने अस्तित्व को रक्खे रहो कुछ नहीं होगा। यही पद्धति सर्वत्र जानना। यदि इस प्रक्रिया को स्वीकार न करोगे तब कदापि कार्य की सत्ता न बनेगी। इस विषय मे वाद-विवाद कर मस्तिष्क को उन्मत्त बनाने की पद्धति है। इसी प्रकार जो भी कार्य हो उसके उपादान और निमित्त को देखो, व्यर्थ के विवाद में न पडो। (२३॥६॥५१) ४. बहुत मनुष्यों की धारणा हो गई है कि जब कार्य होता है तब निमित्त स्वयं उपस्थित हो जाता है। यहां पर विचार करना चाहिए कि यदि निमित्त कुछ करता ही नही तब उसकी उपस्थिति की क्या आवश्यकता है? यदि कुछ भावश्यकता उसकी कार्य में है तब उपादान ही केवल कार्य का उत्पादक है ऐसे दुराग्रह से क्या प्रयोजन ? अष्टसहस्री में श्री विद्यानन्द स्वामी ने लिखा है कि "सामग्री हि कार्यजनिका नेक कारणं" काकी उत्पादक होती है, एक कारण नहीं। (१७७५१) ५. पदार्थों के परिणमन उपादान और निमित्त की सहकारिता में होते हैं परन्तु जो सहकारी कारण होते है उसी समय किसी को सुख मे निमित्त होते है तथा किसी को बुःख मे निमित्त होते हैं। अतः उपादान कारण पर लोग विशेष बल देते हैं। यह ठीक है घट की उत्पत्ति मिट्टी से ही होगी, चाहे कुम्भकार ही बनावे, चाहे जुलाहा बनावे, चाहे वैश्य वनावे, किन्तु निमित्त कारण अवश्य वांछनीय है। (१५१०५) ६. यद्यपि सभी पदार्थ अपने में ही परिणमन करते हैं परन्तु कार्य जब होता है तब उस विकास परिणाम के लिए उपादान कारण और निमित्त की अपेक्षा करता है। जैसे जब कुम्भकार घट बनाता है उस काल में मिट्टी, चक्र, चीवर, जल, दण्ड सूत्र को लेकर ही घट के निर्माण का उद्यम करता है। प्रथम तो उसके यह विकल्प होता है (शेष पृ. ३२ पर) कागण प्राप्ति :-श्रीमती अंगूरी देबी जैन (धमपत्नी श्री शान्तिलाल जैन कागजी) नई दिल्ली-२ के सौजन्य से

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