Book Title: Anekant 1991 Book 44 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 99
________________ कुन्दकुन्द की प्राचीन पाण्डुलिपियों की खोज । डॉ. ऋषभचन्द्र जैन फौजदार प्राचीन प्राकृत आगम परम्परा में कुन्दकुन्द का पाण्डुलिपियो की खोज का कार्य प्रारम्भ किया। इस सातिशय महत्व है। इसीलिए भगवान महावीर के प्रमुख मन्दर्भ में वेश-विश के शोध संस्थानों, पाण्डुलिपि संग्रहाशिष्य गौतम गणधर के साथ उनका स्मरण किया जाता लयों, मन्दिरों के शास्त्र भण्डारों, निजी संग्रहों के स्वामियों है। उनके ग्रन्थों में श्रमण परम्परा का सांस्कृतिक इति- विद्वानों गे पत्राचार द्वारा नियमसार की पाण्डुलिपियों की हास सुरक्षित है। भाषा की दृष्टि से भी उनके ग्रन्थ जानकारी हेतु निवेदन किया है। राजस्थान, दिल्ली एवं विशेष महत्वपूर्ण हैं। कुन्दकुन्द के प्रथों में ऐसे विषय मध्यप्रदेश के कतिपय प्राचीन शास्त्र भंडारों में स्वयं सुरक्षित हैं, जो अन्य आगमों में उपलब्ध नहीं हैं। अभी जाकर सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण से प्राप्त कतिपय महत्वभी भारत तथा विदेशों में कुन्दकुन्द के ग्रंथों की शताधिक पूर्ण सूचनाओ का उल्लेख मैंने अपने विगत लेखों मे पाण्डुलिपियाँ सुरक्षित हैं । आज तक उनका पूरा सर्वेक्षण किया है। नहीं हुमा। सर्वेक्षण के अभाव में उनके ज्ञात सभी ग्रन्थ नियमसार के प्रकाशित संस्करणों की प्रस्तावनाओं उपलब्ध नहीं हो पाये। सभी शास्त्र भंडारों का सर्वेक्षण मे चार पालिपियों की सूचना प्राप्त हुई। किन्तु उनमें होने पर उनके अन्य ग्रन्थ भी मिलना सम्भा है, जो आज से एक पांडुलिपि उपलब्ध नहीं हुई। प्रथम संस्करण तक मात्र सूचनाओ में है। उनके उपलब्ध ग्रन्थों की पाड. उपयोग की गई पांडुलिपि भी शास्त्रभंडार में उपलब्ध लिपियों की सूची भी प्रकाशित नहीं हुई, इससे यह नहीं है । अन्य तीन से पूरे सम्पर्कसूत्र प्राप्त नही हो पाये। निश्चित रूप से कह पाना सम्भव नहीं है कि किस ग्रन्थ नियमनार की पापलिपियों की खोज के दाम में मैंने की कितनी पाण्डुलिपियां कहां सुरक्षित है। देश-वदेश के गभग पचास पांडुलिपि संग्रहालयों की कुन्दकुन्द के प्रत्येक ग्रन्थ के अनेक संस्करण निकले। ग्रन्थसूचियों (कैट लाग्म) का सर्वेक्षण किया। इस सर्वेक्षण हैं। उनमें प्राय एक-दो प्राचीन पाण्डुलिपियों का उपयोग से लगभग तीस पांडुलिपियों की सूचना मिली है। उन हआ है । सम्पादन और पाठालोचन के अभाव में अध्ययन सबकी फोटो या जीराक्स प्राप्त करने हेतु सम्पर्क किया अनुसन्धान भी गलत दिशा में जा रहा है । अतः मम्पादन जा रहा है। नियमसार की एक पांडुलिपि स्ट्रासवर्ग लायपाठालोचन के मान्य सिद्धान्तों के आधार पर कुन्दकुन्द ब्रेरी जर्मनी में भी सुरक्षित है। उसे प्राप्त करने हेतु प्रयत्न हो रहे है। के प्रन्थों के प्रामाणिक संस्करण अत्यन्त आवश्यक हैं। गजस्थान की मर्वेक्षण यात्रा में चार नयी पांडुलिपियों कुन्दकुन्द के दो हजारवें वर्ष में सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्व की जानकारी मिली। उनमे दो महापूत चैत्यालय, अजमेर विद्यालय के प्राकृत एवं जैनागम विभाग में उक्त कार्य तथा दो मिद्धकूट चैत्यालय अजमेर की है। इनमें से दो प्राकृत एवं जैनविद्या के मान्य विद्वान् प्रोफेसर गोकुलचन्द्र पांडुपिया मू। गाथाओं की हैं। एक हिन्दी टीका तथा बैन के निर्देशन में आरम्भ हुआ है। मैं उक्त विभाग मे एक सम्कत टीका गहित है। मध्यप्रदेश के सर्वेक्षण में य० जी० सी० प्रोजेक्ट के अन्तर्गत नियमसार का पाठा गौराबाई दि० जैन मन्दिर, कटरा बाजार, सागर के मंदिर लोचन पूर्वक सम्पादन कर रहा हूं। अन्य ग्रन्थों पर दूसरे में एक पांडुलिनि की सूचना मिली, किन्तु पांडुलिपि वहां विद्वान् कार्य कर रहे है। उपलब्ध नही है। इन दो सर्वेक्षण यात्रामो में पांच नई सम्पादन योजना के अन्तर्गत मैंने नियमसार की पांडुलिपियों की सूचनायें प्राप्त हुई हैं।

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