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२६, वर्ष ,कि..
अनेकान्त नियमसार की अब तक प्राप्त पांडुलिपियों का संक्षिप्त ६. वि. जैन मन्दिर पार्श्वनाथ चौगान, दो विवरण निम्नलिखित हैं:
इसमें मूल प्राकृत गाथाएं तथा हिन्दी भाषा टीका है। १. आमेर शास्त्रमंडगर, जयपुर (संख्या ५८६) इसकी पत्र संख्या १५३, पंक्तियां प्रति पृष्ठ १२ तथा प्रति
इसमें मलप्राकृत गाथायें, संस्कृत छाया तात्पर्यवत्ति पंक्ति अक्षर संख्या ३८.४० है । संवत् १९७६ में प्रति संस्कृत टीका है। इसकी पसंख्या १२६ है। प्रत्येक पृष्ठ तैयार की गई है । हिन्दी टीका प्र० शीतलप्रसाद कत है। पर पंक्तिया है। प्रत्येक पंक्ति में अक्षरों की संख्या ३:. ऐसा नियमसार के प्रथम संस्करण की भूमिका से स्पष्ट १६ तक है। इसकी मूल पांडुलिपि साह राजाराम के है, जो स्वयं ब्र. शीतलप्रसाद द्वारा सम्पादित एवं हिन्दी पढ़ने के लिए महात्मा गोबर्द्धन ने पाटसनगर में संवत ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय, बम्बई से प्रकाशित है। डा. १७६९ में लिखी थी। उसी से संवत १८२४ में यह प्रति- कस्तूरचन्द्र कासलीवाल ने राजस्थान के शास्त्र भंडारों की लिपि की गई है।
सूची भाग ५, पृ० ७० पर भाषा टीकाकार जयचन्द २. आमेर शास्त्र भंडार, जयपुर (५८८)
छाबड़ा को लिखा है। प्रति के लेखनकाल में भी १२ वर्ष यह मूलप्राकृत, संस्कृत छाया एवं तात्पर्यवृत्ति संस्कृत
का अन्तर है। इसकी एक प्रति जैन सिद्धान्त भवन आरा टोका सहित है। इसकी पत्रसंख्या ८४ है। पंक्तियां प्रति के संग्रह में है। पत्र संख्या १२० है। लिपिकार संवत् पृष्ठ ११ हैं। यह संवत् १९३७ की पांडुलिपि से सं० १९१५ १९७७ है। में प्रतिलिपि की गई है।
इसकी एक अन्य प्रति महापूत चंत्यालय, सरावगी
मुहल्ला, अजमेर में भी है । यह संवत् १९८६ में लिखी ३. सरस्वती भवन, मंदिरजी ठोलियान, जयपुर (संख्या ३१७)
७. सेनगण दि. जैन मन्दिर, कारंजा यह प्रति मूलप्राकृत, संस्कृतछाया, तात्पर्य वृत्ति संस्कृत प्रति में मलप्राकृत, संस्कृत छाया, तात्पर्यवृत्ति संस्कृत टीका सहित है। पत्र संख्या १२७ तथा प्रतिपृष्ठ पक्ति टीका है। पत्र संख्या १५६ है। प्रत्येक पृष्ठ पर पंक्तियाँ संख्या है। इसमें दो प्रकार की लिपि है। अन्तिम हैं तथा प्रति पंक्ति अक्षर संख्या २६-३० है। प्रति में प्रशस्ति मे लिपिकाल सूचक श्लोक इस प्रकार है-- लिपिकाल का उल्लेख नहीं है।। "सयत रुपानायगाषिचन्द्रे मासे सिते तिनि मार्गशीर्षे। नायगजाषचन्द्र मास सित वातान मागशाषा
.
८ सिद्धकट चैत्यालय, अजमेर षष्ठयां तिथो संलिखितो मयष ग्रंथो विगार्यो विदुषादरेण ॥" इसमे मूल पाकृत गाथाएं हैं। पत्र संख्या ११ तथा प्रति ४.वि. जैन सरस्वती भंडार लणकरण पांड्या जयपुर पृष्ठ पंक्ति संख्या है। लिपिकाल का उल्लेख नहीं है।
इसमें मूल प्राकृत, संस्कृत छाया, तात्पर्यवृत्ति संस्कृत ६. ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवन, व्यावर टीका सकलित है । पत्रसंख्या ५३ तथा पक्ति संख्या प्रति- मात्र मूल प्राकृत गाथाएं हैं। पत्र संख्या १० तथा पृष्ठ १२ है । इसका लेखनकाल संवत् १७६४ है।
पवित संख्या प्रति पृष्ठ १४ है। लिपिकाल का उल्लेख ५. वि० जैन सरस्वती भंडार, नया मन्दिर, धर्मपुरा,
नहीं है। दिल्ली (संख्या ई-१३(क))
१०. महापूत चैत्यालय, अजमेर
मूल प्राकृत गाथाएँ मात्र हैं। पत्र संख्या १३ है। प्रति मूल प्राकृत, संस्कृत छाया एवं तात्पर्यवत्ति
" प्रत्येक पृष्ठ पर ८ पंक्तियाँ हैं। लेखनकाल का उल्लेख संस्कृत टीका सहित है। पत्र संख्या ७७ तथा प्रतिपृष्ठ नहीं है। पंक्तियाँ १२ है। प्रति पंक्ति अक्षर ४२-४६ हैं। संवत्
क्रम संख्या ८, ६, १.की तीनों मूल गापागों की १८६१ में महात्मा गुमानीराम के पुत्र ने इसे लिपिबद्ध पांडलिपियाँ संस्कृत टीका की प्रति से तैयार हुई है। किया।
(स. २. पर)