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गूजरी महल ग्वालियर में संरक्षित शान्तिनाथ की प्रतिमाएं
। नरेश कुमार पाठक
शान्तिनाथ इस अवसपिणी के सोलहवें तीर्थकर हैं। ध्यानस्थ मुद्रा में विराजमान है। कुन्तलित केशों से युक्त हस्तिनापुर के शासक विश्वसेन उनके पिता और अचिरा उष्णोस एवं लम्बे कर्ण चाप है। ऊपर त्रिछत्र एव पीछे उनकी माता थी। जैन परम्परा में उल्लेख है, कि शान्ति प्रभामंडल है, देवता के पाश्व में ऊपरी भाग में दो जिन नाप के गर्भ में आने के पूर्व हस्तिनापुर नगर मे महामारी प्रतिमाएं कायोत्सर्ग मे एवं दो जिन प्रतिमाएं पद्मासन में का रोग फैला, इस पर इनके गर्भ में आते ही महामारी अंकित है। पादपीठ पर उनके लांछन हिरण (मग) बैठा का प्रकोप शान्त हो गया। इसी कारण बालक का नाम हुआ अंकित है। लगभग 12वी शती ईस्वी की मति की शान्तिनाष रखा गया। शान्तिशाथ ने 25 हजार वर्षों कलात्मक अभिव्यक्ति कच्छपघात युगीन शिल्प कला के तक चक्रवर्ती पद से सम्पूर्ण भारत पर शासन किया और अनुरूप हैं। उसके बाद शान्तिनाथ को हस्तिनापुर के सहस्त्राम्र उद्यान (ब) कायोत्सर्ग : कायोत्सर्ग में निर्मित तीर्थकर में नन्दिवृक्ष के नीचे कैवल्य प्राप्त हुआ सम्मेद शिखर शान्तिनाथ की दो प्रतिमाएं संग्रहालय मे संरक्षित है। इनकी निर्माण स्थली है।
पढावली (जिला-मुरैना) से प्राप्त कायोत्सर्ग मुद्रा में शान्तिनाथ का लांछन मृग और यक्ष-यक्षी गरूड (या शिल्पांक्ति सोलहवें तीर्थन्कर (स० क्र० 127) शान्तिनाथ' वाराह) एवं निर्वाणी (या धारिणी) है । दिगम्बर परम्परा के दोनों हाथो में पूर्ण विकसित पुष्प लगे हुए हैं । सिर पर में मक्षी का नाम महामानसी है।'
कुन्तलित केश कर्णचाप, वक्ष पर श्रीवत्स का अंकन है। केन्द्रीय संग्रहालय गजरी महल ग्वालियर में सोलहवें तीर्थकर के दायें-बायें परिचारक इन्द्र आदि आंशिक रूप तीर्थकर शान्तिनाथ की चार दुर्लभ प्रतिमाएं संग्रहित हैं, से खण्डित अवस्था में अंकित है। पादपीठ पर उनका जिन्हें मुद्राओं के आधार पर दो भागो मे बाटा जा है। लाछन हिरण बैठा हुआ है। पादपीठ के नीचे दायें यक्ष (अ) पद्मासन (ब) कायोत्सर्ग।
गरूड बायें यक्षरणी महामानसी है। तीर्थकर के पार्श्व में (अ) पचासन : पद्मासन मे निर्मित तीर्थकर दायें दो कायोत्सर्ग मुद्रा मे जिन प्रतिमा बाये एक शान्तिनाथ की दो प्रतिमाएं संग्रहालय में संरक्षित हैं। कायोत्सर्ग जिन प्रतिमा का आलेखन है। 11वीं शती विदिशा से प्राप्त पय पादपीठ पर पद्मासन में बैठे हुए ईस्वी को प्रतिमा की मुख मुद्रा सौम्य एवं भावपूर्ण है। शान्तिनाथ' का सिर टूटा हुआ है (स०• 132) पाद- बसई (जिला-दतिया) से प्राप्त कायोत्सर्ग मुद्रा में पीठ पर विपरीत दिशा में मुख किये सिंह प्रतिमा मध्य में अंकित तीर्थकर शान्तिनाथ (स० ० 760) के सिर पर चक्र है । दोनों ओर शान्तिनाथ का ध्वज लाछन दो हिरण कुन्तलित केश वक्ष पर श्रीवत्स चिह्न अंकित है। वितान प्रतिमानों का अंकन है। 10वी शती ईस्वी की मूर्ति का में त्रिछत्र, ऊपरी भाग मे कायोत्सर्ग मे दो जिन प्रतिमा, पत्थर के क्षरण के कारण कलात्मकता समाप्त हो गई है। पार्श्व में दोनों ओर परिचारकों का आलेखन है। पादपीठ
बसई (जिला-दतिया) से प्राप्त तीर्थकर शान्तिनाथ पर विक्रम संवत् 1386) ईस्वी सन् 1259) का लेखा (स.क्र०) 763) सिंह के पादपीठ पर पद्मासन की उत्कीर्ण है। मुख मुद्रा शान्त है।
सन्दर्भ-सची 1. हस्तीमल जैन धर्म का मौलिक इतिहास' खंड-1, इस प्रतिमा को जैन तीर्थकर लिखा है। जयपुर 1971 पृष्ठ-114-18.
4. शर्मा राजकुमार पूर्वोक्त पृष्ठ 471, क्रमांक 127. 2. तिवारी मारूति नन्दन प्रसाव "जैन प्रतिमा विज्ञान" वाराणसी 1981 पृष्ठ 108.
5. ठाकुर एस० आर० कैप्लीग आफ स्काचर्स इन दी 3. शर्मा राजकुमार "मध्यप्रदेश के पुरातत्व का सन्दर्भ आर्केलोजीकल म्यूजियम ग्वालियर एम. बी.
अन्य" भोपाल 1974 पृ.471 क्रमांक: 132 पर पृष्ठ 22, क्रमांक 15.