Book Title: Anekant 1991 Book 44 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 66
________________ २५ वर्ष ४४०२ परिणाम स्वभावी होने पर जैसा कारण होता है वैसा कार्य होता है ऐसे जीव के परिणाम का तथा पुद्गल के परि णाम का परस्पर हेतुत्व का स्थापन होने पर भी जीव छोर पुद्गल के परस्पर व्याप्य व्यापक भाव के अभाव से कर्ता कर्म पने की असिद्धि होन पर भी निमित्तमित्तिक भाव मात्र का निषेध नहीं है क्योंकि परस्पर निमित्त मात्र होने से ही दोनो का परिणाम है [टोका गाथा ५१, ५२ ] क्योंकि जिस समय जो कार्य होना होता है उस समय जीव तथा पुद्गल दोनो द्रव्यो की पर्यायों का सयोग अवश्य होता है इसी को निमित्त नैमिालक संबंध मात्र कहते हैं। निमित्त मिसिक सम्बन्ध माष भी इसलिये कहा है कि कोई द्रव्य एक दूसरे पर जोरावरी नही करता जैसे सूर्यादय होने पर चकवा चकली स्वयं मिल जाते हैं तथा सूर्यास्त होने पर बिछुड़ जाते हैं काई अन्य उन्हें मिलाता या पृथक नहीं करता स्वय ही ऐसा निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध बन रहा है। कारण मा कई प्रकार के होते हैं जिनके होने पर कार्य होता ही है जैसे सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान तथा सम्यकचारय इस तीना को एकता होन पर केवलज्ञान रूपी कार्य होता ही है । और भी कहा हैजत्तु जदा जेण जहा जस्स य नियमेण हीदि तत्तु तदा । रोग वहा तस्सहने ईदि बाद गियांद वादो दु६६२ ।। 1 जो जिस समय जिससे जैसे जिसके नियम से होता है वह उस समय उससे तसे उसके ही होता है। एसा नियम से ही सब वस्तु को मानना उसे नियतवाद कहते है । आगम मे अनेको जगह ऐसा स्पष्ट कहने पर भी एक अकेले उपादान से ही कार्य की सिद्धि मानना एकान्तवाद नाम का मिथ्यात्व है। इसके अतिरिक्त एसा मानना भी आगम के प्रतिकूल है कि जब उपादान जिस रूप परिण मन करने के सन्मुख होता है तब वह गहरी पदार्थों को उसी कार्य के लिए सहयोगी बना लेता है जैसा कि लेख मे सम्पादकीय गोट का ठीक है कि इस विषय पर पहिले काफी चर्चा हो चुकी है। हमारी दृष्टि से तो जब 'जैनतत्त्वमीमांसा' और 'जैनतत्त्वमीमांसा की मीमांसा' जैसी कृतियों में निमित्त उपादान के निष्कर्ष निकालने को पर्याप्त सामग्री (शास्त्रीय उद्धरणों सहित) देने वाले उद्भट विद्वान् तक किसी निर्णय पर एकमत न हो सके हों, सब साधारण लेखो और साधारण पाठको को क्या बिमान ? निश्चय ही यह स्थित आध्यात्मिक है और पक्षपात व आग्रही बुद्धि से दूर अपरिग्रही मन की पकड़ का है । देखें - कौन कितना अपरिग्रह की ओर बढ़ता है ? यस ख्याति विवादविजयी और के भाव से कौन कितनी दूर रहता है ? : " प्रका पृष्ठ २६ पर कहा है । निमित्त नीमत्तिक की परिभाषा इस प्रकार है । जिस समय जो कार्य होना होता है उसी समय वही कार्य होता है और उसी समय के दोनो पदार्थ उपादान तथा निमित्त का सयोग सम्बन्ध होता है उसी कार्य के लिए उसी समय दोनो पदार्थों की उसी समय की पर्याय का सयोग सम्बन्ध होता है इसी संयोग सम्बन्ध को निमित्त नैतिक सम्बन्ध कहते है गोमटसार कर्म काण्ड गाथा ६८२ बहुत खुलासा किया है इसके अतिरिक्त निमित्तनैमित्तिक शब्द आगम में अनेकों जगह आया है। तथा वर्णोजी महाराज कहा करते थे 'जो-जो भाषी बीत राग न सो-सो होस। वीरा रे अनहोनी कबहु न होय काहे होत अधीरा ' इस पर एक बार ईससे में किसी ने प्रश्न र' कर दिया कि हम तब जाने जब इस समय अंगूर आजांय । तब वर्णीजी बोले निमित्त नमित्तक सम्बन्ध होगा तो आ जायेंगे। कोई व्यक्ति उसी समय अगूर लेकर पहुंच गया इसका अर्थ ऐसा न करना कि वर्णीजी के कहने से घागये यदि ऐसा अर्थ कर लिया तो एकान्त मिध्यात्व हो जायेगा, क्योंकि ये सिद्धान्त है कि कोई द्रव्य किसी अन्य द्रव्य के आधीन नही निमित्त उपादान की चर्चा के समाधान के लिए निमित्त नैमित्तिक संबंध की परिभाषा भली प्रकार समझना होगा वरना एकान्त मिथ्यात्व हो जायेगा । एक समय मे होने वाले कार्य के लिए हर समय के किसी भी उपादान निमित्त के संयोग सम्बन्ध को कार्य का नियामक मानना एकान्त ऐसा नियम से सब वस्तु के मानना मिथ्यानितवाद है जैसा गेमटसार मे कहा है । बहुचचित निमित्त उपादान के विषय में हमारा वितन आगमनुरूप है। विद्वान् चितन करेगे तो बहुत-सी प्रतियां दूर होगी ऐसा हमें विश्वास है ।

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