________________
८४४०३
मा
साथ इस देवी के पत्कार की कथा बहुत प्रसिद्ध है । ऐतिहासिक युग
पार्श्वनाथ और नाग-पूजा:
तेईसवे तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे । उनको ऐतिहासिकता तो सिद्ध ही है। उन्होंने अपने जीवन मे ७० वर्षो तक विहार कर धर्म का प्रचार किया था । उन पर कमठ नामक बेरी ने घोर उपमर्ग किया था । सम्भवतः यह आश्चर्यजनक ही है कि कर्नाटक मे कमठान (मठ स्थान ? ) कमठगी जैसे स्थान हैं और कमथ या कमठ उपनाम आज भी प्रचलित हैं। वैसे ये उपसर्ग उत्तर भारत में हुए बनाए जाते हैं किन्तु स्थान- भ्रम की सम्भावना से भी इनकार नही किया जा सकता ।
तीर्थंकर पार्श्वनाथ नागजाति की एक शाखा उरगबश के थे ( उरगस) । उनकी मूर्ति पर सर्पफणों की छाया होती है । कुछ विद्वानों का मत है कि पार्श्वनाथ के समय में नाग-जाति के राजतन्त्रों या गणतन्त्रों का उदय दक्षिण में भी हो चुका था और उनके इष्ट देवता पार्श्वनाथ थे ।
कर्नाटक में यदि जैन बसदियां (मन्दिरों) का वर्गी करण किया जाए तो पार्श्वनाथ मन्दिरो को ही संख्या सबसे अधिक आएगी। इसी प्रकार पार्श्व-प्रतिमा स्थापित किए जाने के शिलालेख अधिक सख्या में है।
एक तथ्य यह भी है कि कर्नाटक में पार्श्वनाथ के वक्ष धरणेन्द्र यक्षी पद्मावती की मान्यता बहुत ही अधिक है । कुछ क्षेत्रो मे पद्मावती की चमत्कारपूर्ण प्रतिमाएं है ।
कर्नाटक के समान ही केरल मे नाग-पूजा सबसे अधिक है । कुछ विद्वानों का अनुमान है कि केरल में यह पूजा बौद्धो के कारण प्रचलित हुई । अन्य विद्वान् इमका खण्डन कर कथन करते है कि यह तुलु प्रदेश (मूडबिदी के आस-पास के क्षेत्र) से केरल में आई और वहा तो जैनधर्म और पार्श्वनाथ की ही मान्यता अधिक थी। कर्नाटक के दक्षिणी भाग मे नाग-पूजा भी पार्श्वनाथ के प्रभाव को प्रमाणित करती है।
महावीर और हेमांगद शासक जीवंधर :
चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर, जिनका निर्वाण भाज (१९८० ई०) से २५१४ वर्ष पूर्व हुआ था, के धर्म
का प्रचार अश्मक देश (गोदावरी के तट का प्रदेश), सुश्मक देश (पोदनपुर) तथा हेमांगद देश (कर्नाटक) में भी था हेमांगन देश की स्थिति कर्नाटक में बतायी जाती है। यहां के राजा जीवंधर ने भगवान महावीर के समवशरण में पहुंचकर दीक्षा ने ली थी। संक्षेप में, जीवंधर की कथा इस प्रकार है- जीवंधर के पिता सत्यंधर अपनी रानी में बहुत आसक्त हो गए। इसलिए मन्त्री काण्ठागार ने उनके राज्य पर अधिकार कर लिया । सत्यंधर बुद्ध मे मारे गये किन्तु उन्होंने अपनी गर्भवती राती को केकयन्त्र मे बाहर भेज दिया था शिशु ने बड़ा होने पर आचार्य आर्यनन्दि से शिक्षा ली और अपने राज्य को पुनः प्राप्त किया। काफी वर्ष राज्य करने के बाद उन्हें वैराग्य हुआ और हे भगवान महावीर के समवसरण में जाकर दीक्षित हो गए ।
सन् १९०२ ई० में प्रकाशित 'Karnataka State Gazeteer Vol-1 में लिखा है
—
"Jainism in Karnataka is believed to go back to the days of Bhagawan Mahavir. Jivandhara, a prince from Karnataka is described as having been initiated by Mahavir himself."
अर्थात् विश्वास किया जाता है कि कर्नाटक मे जैनधर्म का इतिहास भगवान महावीर के युग तक जाता है । कर्नाटक के एक राजा जीवंधर को स्वयं महावीर ने दीक्षा दी थी ऐसा वर्णन आता है ।
संस्कृत, प्राकृत तथा अपभ्रंश मे तो लगभग एक हजार वर्षों तक जीवंधरचरित पर बाधारित रचनाएँ निखी जाती रहीं। तमिल और कन्नड़ में भी उनके जीवन से सम्बन्धित रचनाएँ है। जीव चिन्तामणि (तमिल), । कन्नड़ में जीवंध परिते (भास्कर २४२४ ई.), जीवंधरसांगत्य (बोम्मरस, १४८५ ई०) जीवंधर- षट्पदी (कोटीस्वर १४००६०) तथा जीवंचरचरिते (बोम्मरस) ।
---
उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर यह निष्कर्ष सुविचारित एव सुपरीक्षित नही लगता कि कर्नाटक में जैनधर्म का प्रचार ही उस समय प्रारम्भ हुआ जब चन्द्रगुप्त मौर्य और