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गतीक से बागे।
धवल पु० ४ का शुद्धिपत्र निर्माता -जवाहरलाल मोतीलाल बकतावत; भीण्डर (राज.)
अशुद्ध देवराशि
देयराशि अ
(जगप्रतर) (अ-१) र (जगत्प्रतर) १५ १६-१-१०००.०४३११६ १६ १०००.०४३११६
पंक्ति
१९८
१९८
(अ-१)
१६-२.
१९८ ११८ १९८ १९८
प्राप्तशलाका मान में से लेकर सोलह प्रतिषु 'सुवर्ण' इति पाठः
लेकर क्षेत्रफलों का अनुपात सोलह प्रतिषु सुण्णं इति पाठः।
२००
२०५ २०५ २०८
२११
१(१६न-१)1_१(४न-१)]_T (१६-१)1_[१ (४-१) 1 L (१६-१)J L (४-१) (१६-१) (1-१) । अउत्त।
अउत्तं भागों से
मागों से राजुप्रततररूप
राजुप्रतररूप योनिगती
योनिनी [नोट-इसी प्रकार सर्वत्र अनुवाद में 'योनि
मती' का 'योनिनी' करना चाहिए ३१ (चरम) तिर्यच
तिर्यञ्च
हो जाता है। कस्यासंख्येयभाग:
लॊकल्यासंख्येयभागः स्थिर और
स्थित और २. पूर्वोक्त
पूर्वोक्त समुचतुरस्त्र
समुचतुरस्र ३२ वह क्षेत्र के
वह क्षेत्र २४ लोक बाहत्य
योजन बाहल्य अ-क प्रत्यो
आ-क प्रत्योः
२१२
२६
२१६ २१९
२४
२१६
२२१
२२१
१२२
२९.५६ राजुप्रतर,
२८९२६ राजप्रतर
विश्कम्म वाले
२२२ २२४ २२५
नही
विष्कम्भ वाले नहीं है। देवों के अगम्य
२८
देवों नेअगम्य