________________
निमित्ताधीन दृष्टि
" श्री बाबूलाल जैन कलकत्ते वाले सम्पादकीय-पिछले वर्षों मे निमित्त की चर्चा विद्वानों के आग्रहवश काफी विवाद-ग्रस्त रही है काफी लोग पूजा-पाठ आदि जैसी क्रियाओ के करने से भी उदास हुए हैं। दीर्घकालीन पटाक्षेप के बाद लेखक ने पुनः इस विषय को छुआ है और आचार्यों के वाक्यो के प्रकाश में सिद्ध किया है कि निमित्त अकर्ता है। हम लेखक को मान्यता को पुष्ट करते हुए पाठकों का ध्यान इधर भी खीचना उचित समझते हैं कि पाठक 'निमित्तकर्ता नहीं' इससे व्यवहार में ऐसा भाव ही लें कि अन्य द्रव्य किसी अन्य द्रव्य के प्रति अका है फिर भी निमित्त के बिना भी कार्य नहीं होता अतः अनुकूल निमित्तों का अवलम्बन लेकर कल्याण करना चाहिए। आशा है पाठक उक्त लेख को इसी दृष्टि से हृदयगम करेंगे और धार्मिक आचार-विचार जैसे निमितो को कल्याणकारी मान उन्हें अपनाए रहेंगे और अध्यात्म पर जोर देने वाले निमित्त- कर्तावादी हम सभी जन भी अपन परिबहरूप अकर्ता-निमित्तो के कृश करने मे उद्यत होगे तभी ऐसी चर्चाओ के फल मूर्तरूप लगे।
-संपादक] निमित्त के बारे मे अनेकों प्रकार की चर्चा समय- कापने का निषेध के द्वारा समस्त निमित्तो के कर्तापने समय हुई है, परन्तु ऐसा लगता है निमित्त को कर्ता का निषेध किया गया है। मानने वाले अभी भी निमित्त को का मानते जा रहे हैं। अगर निमित्त को का माना जाएगा तो जो कार्य प्रश्न अभी खड़ा हुआ ही है ममाधान नही हो पा रहा है। निमित्त ने किया है अथवा निमित्त की वजह से किया समाधान होने के बाद अगर कोई सही बात को न माने गया है वह उसी के द्वारा मेटा जा सकता है । अगर राग तो उसकी खुशी है परन्तु समाधान इस ढंग का होना की उत्पन्न कर्ता स्त्री है तो राग को मिटाने वाली भी चाहिए जो न्याय, युक्ति तर्क से हमारे जीवन के हर स्थल वही होगी। उसकी इच्छा के बिना राग नही मिट पर सही उतरे। अगर वह सही उत्तर- है तो आगम से सकता। अगर ऐसा माना जाएगा तो आत्मा की मोक्ष भी उसका मिलान बैठना ही होगा। आज इसके बारे में प्राप्ति अथवा स्वर्ग, नर भी पगधीन हो जायेगा। राग कुछ विचार करते है, विद्वान लोग सी गलत का निर्णय की उत्पत्ति में भी आत्मा का कोई दोष नही होगा क्योकि करें। यह बात तो निश्चित ही है कि निमित्त कर्म नही गग का कर्ता कोई और होगा । जैसा आजकन कहते है हो सकता । कर्ता की परिभाषा है कि जो परिणमन करे कि ब्लेक के पैसे का आहार दे दिया इसलिए हम लोग वह कर्ता। कोई द्रव्य किसी अन्य द्रव्य का अथवा द्रव्य शिपलाचारी ह। गाः । अब उनका ठीक होना गहस्थो के की पर्याय का परिणमन कराने वाला नही हो सकता। कोई आधीन है अगर गहस्थ चाहेंगे तो उनका शिथलाचार अन्य द्रव्य को अथवा उसकी पर्याय या कर्ता माने तो दो मिटेगा, नही चाहेगे तो नही मिटेगा । परन्तु नरक निगोद द्रव्यों मे एकत्वपना होकर मिथ्यात्व की पुष्टि हो जाएगी। में गृहस्थ नही जाएगा शिथलाचारी ही जाएगा ऐसा इसीलिए जैन शासन मे भगवान को कर्ता नही माना है। श.यद वे नही मानते।' अगर कोई भगवान को कर्ता मानते है तो भगवान भी हमारी अगर राग-द्वेष का कर्ता दूर रा है तो संसारी आत्मा के लिए अथवः अन्य पुद्गलादि के लिए अन्य द्रव्य आत्माओं को राग द्वेष के अभाव करने का भी उपदेश हमा और उनका भगवान कर्ता है तो वे भगवान के साथ नहीं देना चाहिए क्योंकि वे क्या कर सकते है संसार मे एकत्वपने को प्राप्त हो जायेंगे । इस प्रकार भगवान के दूसरा दम्य तो रहेगा और वह जैसा करावेगा वैसा ही