Book Title: Anekant 1991 Book 44 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 49
________________ सुनम्बिकृत उपासकाध्ययन में व्यसनमुक्त वर्णन गो-बंभण- महिलाणं विणिवाए हवइ जह महापावं । तह इलरपाणिघाए वि होइ पावं ण सदेहो ॥ वसु० श्रा० १८ १०. होउण चक्कवट्टी चउदहरणाहिओ वि संपत्तो । मरिण बंभदतो निरयं पारद्धिरमणेण ॥ वसु० श्रा० १२६ ११. परदत्वहरणसीलो इहपरलोए असावबहुलाबो पाउण्ड जायणायण कयाविह पलाएछ । वसु० श्रा० १०१ जगणेइ माय वप्पं गुरू-मित्त सामिण तवस्सिं वा । पण हरइ छ कि विष्णुं किपि जन॥ि वसु० प्रा० १०४ १२. नासावहारदोसे दंडणं पाविण सिरिमूई । मरिऊणं अट्टझाणेण हिडिओ दोहससारे || वसु० ० श्रा० १३० इक्ष्वाकु -- इक्षुरस का संग्रह करने का उपदेश देने के कारण । गौतम - उत्तम स्वर्ग सर्वार्थ सिद्धि से आए थे इस कारण (गो याने स्वर्ग ) काश्यप - काश्य ( तेज) के रक्षक होने के कारण मनु और कुलक प्रजा की आजीविका का मनन किया इस कारण प्रजापति, आदि ब्रह्मा, विधाता, विश्वकर्मा, सृष्टा इन नामों से भी भगवान् जाने जाने लगे । ( पृ० ७ का स यह राज्यकाल तिरेसठ लाख पूर्व तक चला जिसमे प्रभु पुत्र-पौत्रों से सम्पन्न बने रहे सारे राम इन्द्र उनके ५६. प्रमारणसमु० १३ स्वार्थपातिक १।१२।११ ६०. न्यायसून ११२ स्वार्थवार्तिक १।१।४५ ६१. न्यायसूत्र ११४०० वातिक १०२२६ ६२. योगाय १२ स्वार्थवा ६२. स्वार्थवार्तिक १०१०१८ ६५. २८२४, १३. दट्ठूण परकलतं णिब्बुद्धी जो करेइ अहिलासं । णय किपि तस्य पावद पाव एमेव असे ॥ ६४. १।१०१८, ६६.५२६, ५०७६. ६७. ५।२६, वसु० भा० ११२ freeसद्द रूप गाय यियसिरं हणमपि। परमहिलमलभमाणो अमप्पलाव पि जपे ।। ११ वसु० श्रा० ११३ कवि कुणइ रद्द मिट्ठ पि य भोयणं ण भुजेइ । छिपि अलहमाणो अच्छs विरहेण सतत्तो ॥ वसु० ० श्रा० ११५ १४. होउण खयरणाहो वयक्खओ अद्धचक्कवट्ठी वि । मरिकन गओ वारय परिस्थि हरमेण लंकेसो ॥ वसु० ० १३ १४. साकेत सत्तवि वसाई सतवि मरिण गओ णिरय भमिओ पुणदीहससारे || वसु० श्रा० १३३ भोगोपभोग की सामग्री भेजता रहा क्यों तीर्थकर न तो स्तनपान करते है और न पृथ्वी पर का भोजन ग्रहण । उनके भोजन स्वर्ग से आया करते हैं । ( पृ० ५ का शेषांश) भगवान् ऋषभदेव का कितना बड़ा योगदान था इसकी थोड़ी-सी झलक ही है यह भव्य जन आदिपुराण का पारायण ( स्वाध्याय नामक तप) करे और महाकवि भगवजिनसेनाचार्य के विशाल ज्ञान, काव्यकला, कल्पना, तथ्य, शब्द, अलकार, छन्द के साथ-साथ धर्म का आनन्द प्राप्त करे ताकि मोक्ष लक्ष्मी की प्राप्त करने में समर्थ हो सके। मन्दाकिनी नई दिल्ली ६६. ५।१७।२३, ७२. ६।१३, ७०.५।१७ ३७, ७३.८११२६, ६८. ५०१०१, ७१.५।१६२४, ७४. ८।१।२६, ७५. ६/३६, ७६.८११७, ७७. मनुस्मृति ५।३६७८ तस्वार्थवार्षिक १२२-२७, ८१. ११०५०-५४, ७६. १२२४८०. वही १११।१३ ८२. ५०१०१००१. २१०११ ८४ ३०२ ८५.५०३७२४

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