Book Title: Anekant 1991 Book 44 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 53
________________ अहार का शान्तिनाथ प्रतिमा लेख डा. कस्तूरचन्द्र 'सुमन' एम० ए. पी-एच० डी० काव्यतीर्थ भारतीय इतिहास में अभिलेखों का अनठा योगदान पंक्ति 2. द्व देवपाल इति ॥1॥ श्री लपाल इति तत्तनयो रहा है। अभिलेखों की प्रामाणिक उनके मौलिक स्वरूप (कमल-पुष्प) वरेण्यः युण्यक मूत्तिरभवद्वसुबाटिमें ही प्राप्त होती है और उनका अन्त परीक्षण भी उनकी कायां (म्)। कोत्तिज्जंग त्र (य)-- मौलिक स्थिति से ही होता है। जिनमे काल का निर्देश पक्ति 3. परिभ्रणस (श्र) मार्त्ता यस्यस्थिराजनि जिनायनहीं होता उनका काल निर्णय लिपि और लेखन शैली से तन (कमल-पुष्प) च्छलेन ॥2॥ एकस्तावद नूनहो किया जाता है। अब तक जो जैन अभिलेख संग्रह वुद्धिनिधिना श्री (श्री) शान्ति चेत्या लप्रकाश में आये है, उनमें लेखको ने उनके मोलिक रूप को पंक्ति 4. यो दिष्टया (दृष्ट्या) नंद (नन्द) पुरे पर: प्रकट नहीं होने दिया है। अभिलेखो म लेखको ने अपनी परनर.नंद (नन्द) पद: श्री (धी मता । येन छाप लगा दी है। अभिलेखों से मूललेख की पक्ति के श्री (श्री) मदनेस (श) सा (कमल-पुष्प) गरपुर अन्त और प्रारम्भ का बोध नहीं होता। प्राचीन अभि- तज्जन्मनो निम्मिमे सोय (सोऽयं) इरे (धे) ष्ठि लेखों मे सरेफ वर्ण द्वित्व वर्ण में प्रयुक्त हुए है। इसी वरिष्ठ राहणा इति इरी (श्री रल्हणाख्याद्प्रकार स्थान की बचत करने के लिए प्राचीन अभिलेखा पंक्ति 5. ॥3॥ तस्माद आयत कुलाम्वर पूर्णाचंद्र (चन्द्रः) में अनुनासिको क स्थान में अनुस्वार का प्रयोग हुआ है। श्री (श्री) जाहस्तदनुजोद (कमल-पुष्प) य चंद्र ख वर्ण के लिए 'ष' तथा श और 4 वर्गों के लिए म वर्ण । चन्द्र) नामा। एक: परोपकृति हेतु कृतावतारो के प्रयोग भी द्रष्टव्य है । इन विशेषताओ का प्रकाशित धात्मकः पुनरमो। अभिलेखों मे अभाव है। पंक्ति 6. घ सुदानसारः ॥4 ताभ्यामसे (शे) ष दुरितोष अतः प्रस्तुत अभिलेख में अभिनेख का मौलिक स्वरूप स (श) मैक हेतु (तु) निर्मा (कमल-पुष्प) पित रखा गया है। शुद्ध रूप कोष्टक के भीतर दिये गये है भुवनभूषण भूतमेतत् । परी (श्री) शान्ति चैत्य जिससे मौलिक और शुद्ध दोनो रूप पाठको को प्राप्त मति (मिति) नित्य सुख प्रदा-(नात्) होगे। अभिलेख के साथ ही अभिलेखी अन्य सामग्री का पकिन 7. मुक्ति दि (श्रि) वदनवीक्षण लोलुपाभ्याम् अपेक्षित विवेचना भी दी गई है। इससे अभिलेख के 1100 छ छ छ ।। (कमल-पुष्प) सवत् 1237 माध्यम से प्राचीन इतिहास को जानने समझने में भी मार्ग सुदि 3 स (शु) के स्त्रो (श्री) मत्परमाडिदेव सुविधा होगी ऐसा मेरा विश्वास है। परमद्धिदेव) विजय गज्येप्रामाणिक रूप से अहार का अतीत निम्न पक्तियो मे नित म पंक्ति 8. चंद्र (चन्द्र) भारकर समुद्रतारका यावत्र जनद्रष्टव्य है चित्तहारका । धर्म ।। (कमल-पुष्प) रि कृत अहार शान्तिनाथ-प्रतिमालेख मूलपाठ सु । शु)द्ध कीर्तन तावद (दे) व जयतास्सु. पंक्ति 1. ओ नमो वीतरागाय ।। ग्र (ग) हपतिवशसरोरुह कीर्तनम् ।। (61 सह (कमल-पुरु) स रस्मिः (रपिमः) सहस्रकट पंक्ति 9. वाल्हणस्थ मुतः परी (श्री) मान् रूपकारो महा. यः । वाणपुरे व्यघिताशी (सी) स्री (श्री) मति।। पा (कनल-पुष्प) पटो वास्तु सा (शा) मानि स्त्रज्ञस्तेन विवं (बिम्ब) सुनिम्मित (तम्॥ (7)m

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