Book Title: Anekant 1991 Book 44 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 51
________________ नियमसार का समालोचनात्मक सम्पावन 119 130 जेण्ह 147 158 170 आई : आश्चर्य इस बात का है कि कुन्दकुन्द के नाम पर 135 मोक्खंगप मोक्खगयं स्थापित संस्थाओं द्वारा भी इस दिशा में प्रयत्न नहीं किये 137,138 किह, कह कह गये। 140 घरू घर नियमसार के पहले संस्करण मे मूल प्राकृत गाथाएं 141 पिज्कृतो, पज्जुत्तो, णिज्जुत्ती, मणेइ दो बार छपी हैं। उन दोनो मे भी पाठ भिन्नता है। मणति उदाहरण के लिए कुछ पाठ इस प्रकार है 142 णिज्जेत्ती, वावस्सयं णिज्जुदी, वावस्सयं गाथा संख्या II आवस्सयं 11; वरतवचरणा वरतवचरण 141,146,147 आवास आवस्स परिहाण परिहारं 144,149 आवासय आबस्सय जोण्ड 156 मति मणेइ 142 कम्भ वाबस्सयति कम्भमावासयति 147 सामण्ण गुण सामाइयगुणं कुणदि कुहि 155 पहिक्कमणादिय पडिक्कणादी 153 सज्झाउं सज्झाओ पडिवज्ज य पडिज्जिय 167 पच्छतस्प्त पंच्छत्तस्स 165 णिच्छयणयएण णिन्छयणएण 169 किल दूमण होदि किं दूसणं होई 166,169 दूसण सण णव णवि जागदि ण विजाणदि 185 पुवावरविरोधो जदि पुग्धावर यविरोहो 171 अप्पगो अप्पणी , समयग्गा समयण्हा साकट्ठ सा अक्वं सभी संस्करणो मे पारम्परिक रूप से कुछ पाठ अशुद्ध 179,160,191 य होइ छाते आ रहे हैं । इम ओर अभी तक किमी का ध्यान नही गया। यहा कुछ पाठ एव उनके स्थान पर संभावित नियमसार की 30 प्राचीन पांडुलिपियों की जानकारी पाठ दिय जा रह है-- अभी मिली है। शास्त्र भडारो के सर्वेक्षण का कार्य जस गाथा संख्या मुद्रित पाठ सम्मावित पाठ रहा है। राजस्थान के शास्त्र भडारो से चार पांडलिपियों (1) (2) (3) की जीराक्स कापियां प्राप्त हो चुकी है। शेष के लिए अत्ता, अत्तो पा प्रयत्न किए जा रहे है। 6 छुहहभीरूरोसो छुहतण्हाभीरोसो प्रस्तुत सम्पादन योजना में सर्वप्रथम ग्रन्थ का मूल 32 चावि प्राकृत पाठ तैयार किया जायेगा। इसका सर्वाधिक सपदा, सपदी सपया प्रशस्त आधार प्राचीन पांडुलिपियां होगी। उत्तर और जे एरिसा एदेरिसा दक्षिण भारत में अलग-अलग समय में पांडुलिपियां लिखी 77,78,79,80,81 कत्तीर्ण कत्ताण गई हैं। इनमे देवनगरी एव कन्नड़ लिपि की पाडुलिपियां 95 मसुह प्रमुख हैं। देश-विदेश मे उपलब्ध सभी पांडुलिपियों का 97 णवि मुच्चइ ण विमुच्चइ सर्वेक्षण किया जा रहा है। परीक्षण के बाद सर्वाधिक 114 पूरी गाथा महत्वपूर्ण एव प्राचीन प्रतियो का उपयोग किया जायेगा। 115 खुए चदु विह कसाए खु चहुविहे कमाए नियमसार की कतिपय गाथाएं कुन्दकुन्द के अन्य समज्जिय य अज्जिय ग्रन्थो मे यथावत् प्राप्त होती है। कुछ किचिव शब्द परि 175 हदि झाण भावि 32 72 असुह 118

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