Book Title: Anekant 1991 Book 44 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 54
________________ वर्ष४,कि०२ अनेकान्त छन्द-परिचय आनन्द देनेवाला दूसरा चैत्यालय अपने जन्म इम अभिलेख के प्रथम श्लोक में आर्या दूसरे, चौथे, स्थान श्री मदनेशसागरपुर मे वनवाया था। और पांचवें इलोको मे वसन्ततमिलका, तीसरे श्लोक मे श्लोक 4. उनके कुल रूपी आकाश के लिए पूर्णचन्द्र के शार्दूलविक्रीडित, छठे श्लोक मे रथोद्धता और सातवे समान श्री जाहड उत्पन्न हुए। उनके छोटे भाई श्लोक में अनुष्टुप छन्द है। उदयचन्द्र थे। उनका जन्म प्रधानता मे परापपाठ टिप्पणी कार के लिए हुआ था। वे धर्मात्मा और अमोघ. दानी थे। 1. मूलपाठ में न और म वर्गों के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग हुआ है। श्लोक 5. मुक्ति रूपी लक्ष्मी के मुखावलोकन के लोलूपी 2श के स्थान में स और स के स्थान मे श के उन दोनों भाइयो के द्वारा ममस्त पापों के क्षय प्रयोग भी हुए हैं। का कारण, पृथिवी का भूषण-स्वरूप शाश्वत् 3. श्री तीन प्रकार से लिखा गया है--धी, श्री सुख को देनेवाला श्री शान्तिनाथ भगवान का और ली। बिम्ब निर्मित कराया गया। 4. ई स्वर की मात्रा वर्ण के ऊपर घुमावदार आकति सम्वत् 1237 अगहन सुदी 3, शुक्रवार श्रीमान् लिए है। वर्ण की ऊपरी आड़ी रेखा से संयुक्त नहीं है। जिला 5. वर्ण मे उ स्वर की मात्रा अन्य वर्गों के समान श्लोक 6. इस लोक मे जब तक चन्द्रमा, सूर्य, समुद्र और लो नीचे संयुक्त की गई है। तारागण मनुष्यों के चित्तो का हरण करते हैं 6. 'ए' स्वर की मात्रा के लिए वर्ण के पहले एक तब तक धर्मकारियो का रचा हुआ सुकीतिमय बड़ी रेखा का व्यवहार हुआ है। यह सुकोर्तन विजयी रहे। 7. और च वर्ण व वर्ण की आकृतिक लिए हैं। लोक 7. वाल्हण के पुत्र महामतिशाली मूर्ति-निर्माता 8. शा वर्ण ल वर्ण की आकृति में अकित है। और वास्तुशास्त्र के ज्ञाता श्रीमान् पापट हुए । 9. ब के स्थान में 'व' वर्ण का प्रयोग हुआ है। उनके द्वारा इस प्रतिमा को रचना की गई। 10. सरेफ वर्ण द्वित्व वर्ण में अंकित हैं। अभिलेख में उल्लिखित नगर 11. पांचवें श्लोक के अन्त मे 'एज' शब्द अनावश्यक प्रतीत होता है। वाणपुर-इस नगर का नाम प्रस्तुत प्रतिमा-लेख की भावार्थ प्रथम पक्ति मे आया है, जिसमें बताया गया है कि श्रीमान लोक 1. वीतराग (देव) के लिए नमस्कार है । जिन्होंने देवपाल ने यहां सहस्रकूट चैत्यालय निर्मित कराया था। बानपुर में सहस्रक्ट चं त्यालय बनवाया वे यह स्थान मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ से अठारह मील गृहपति वंश रूपी कमलो को प्रफुल्लित करने के दूर पश्चिम मे वाणपुर ग्राम के शहर गेड से किनारे अज लिए सूर्य स्वरूप देवपाल यहां (इस नगर मे हुए। भी स्थित है। डा. नरेन्द्रकुमार टीमगढ़ के सौजन्य से श्लोक 2. उनके बसुहाटिका नगरी में पवित्रता की मूर्ति 15/11/90 के प्रातः इस सहस्रकूट के दर्शन करन का एक रत्नपाल नामक पुत्र हुए जिनकी कीत्ति सौभाग्य प्राप्त हुआ था। तीनों लोकों में परिभ्रमण करने के श्रम से थक- यह चैत्यालय सात भागो में विभाजित रहा है। कर जिनायतन के बहाने स्थिर हो गई : ऊपरी सातवा भाग नहीं है। प्रतिमा की गणना करने श्लोक 3. श्री रल्हण (रत्नपाल) के श्रेष्ठियो मे प्रमुख पर उनकी 1000 संख्या पूर्ण न होने पर यह संभावना श्रीमान् गल्हण का जन्म हुआ : वे समग्रबुद्धि के तर्क संगत प्रतीत हुई । ऊपरी अश की अपूर्णता से भी यह निधान थे। उन्होने श्री शान्तिनाथ तीर्थंकर का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। एक स्यालय नन्दपुर में और सभी लोगों को डा० नरेन्द्र कुमार जी के सहयोग से पपासन और

Loading...

Page Navigation
1 ... 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146