Book Title: Anekant 1991 Book 44 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 52
________________ अनेकांत की दृष्टि से तुलनात्मक अध्ययन किया जायेगा । कुन्दकुन्द के अन्य ग्रन्थों में तथा दिगम्बर श्वेताम्बर प्रन्थों में यथावत् या किंचिद् शब्द परिवर्तन के साथ उपलब्ध एवं विषयवस्तु की दृष्टि ने साम्य रखने वाली नियमसार की गाथाओं का अध्ययन प्रस्तुत किया जायेगा । प्रकाशित एक भी संस्करण में शब्दकोश नहीं है । इसलिए परिशिष्ट मे नियमसार का सम्पूर्ण प्राकृत शब्द कोश दिया जायगा । पारिभाषिक शब्दों का विश्लेषण पृथक रूप से प्रस्तुत किया जायेगा। मूलगायानुक्रमणिका, संस्कृत टीका के पथों की अनुक्रमणिका एवं विष्ट सामग्री के स्वतन्त्र परिशिष्ट होंगे । १४४४, कि० २ वर्तन के साथ मिलती है । विषयवस्तु की दृष्टि से उनमें साम्य है। अन्य दिगम्बर श्वेताम्बर प्रन्थों मे भी कतिपय गाथाएं उपलब्ध हैं । मूल पाठ सशोधन में इस सामग्री के समुचित उपयोग का ध्यान रखा जायेगा । नियमसार मे कुछ प्राचीन पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग पारम्परिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। कुछ का विषयवस्तु की दृष्टि से उल्लेखनीय है। ऐसे शब्दों को सैकड़ों वर्ष पश्चात् निर्मित व्याकरणशास्त्र एवं छन्दशास्त्र के नियमों के अनुरूप नहीं बनाया जा सकता। भाषाशास्त्र की दृष्टि से भी यह उपयुक्त नही है । मूल शकृत पात्र के संशोधन में उक्त सभी तथ्यो का ध्यान रखा जायेगा । इसके साथ प्राकृत भाषा एवं विषय के अधिकारी विद्वानों का भी यथासम्भव सहयोग प्राप्त किया जायेगा । सम्पादित पाठ के अनुरूप हिन्दी और अंग्रेजी अनुवाद किये जायेंगे। प्रस्तावना मे सम्पादन सामग्री का परिचय होगा । इसमें सम्पादन में प्रयुक्त ताडपत्रीय पांडुलिनियो; हस्तलिखित कलीय पालियों तथा प्रकाशित सस्करणों का विवरण मुख्य है अज्ञात तासापों के आभार से कुन्दकुन्द के समय एवं कृतियों पर विचार होगा टीकाकार के विषय में भी विचार किया जायेगा। भाषाशास्त्रीय दृष्टि से ग्रन्थ का अध्ययन समाविष्ट होगा । साथ में नियमसार की गाथाओ का भाषा एवं विषयवस्तु उपर्युक्त तथ्यों के साथ नियमसार की प्राकृत गाथाओं को आके समक्ष प्रस्तुत करते हुए विनम्र निवेदन है कि आपकी दृष्टि मे जो प्राकृत पाठ विचारणोय लगते हो, उन्हें रेखांकित कर दें उन पाठो को जांचने और शुद्ध करने के लिए उपयुक्त स्थल- सामग्री सुझायें तथा परम्परागत शास्त्री के अपने व्यापक ग्रध्ययन के आधार पर समावित पाठ भी सुझावे । सम्पादन योजना के विषय मे सुझाव विस्तार मे स्वतन्त्र रूप से अंकित करने की कृपा करें। आपके सहयोग और मार्गदर्शन को हभ अत्यन्त महत्वपूर्ण मानते हैं और उसका आदर पूर्वक उल्लेख करें | सं० [सं० बि० बि० वाराणसी जिनवाणी की रक्षा का उपाय श्रुतकेवली गणधर वेब और परम्परित, ज्ञानी, प्राचीन मान्य परम दिगम्बराचार्य पूर्ण अपरिग्रही राग-बिरोधरहित होने से वस्तु तत्व का यथार्थ वर्णन कर सके। हमें उनके वचन प्रमाण करने चाहिए और शास्त्र की गद्दी पर उन्हीं का वाचन करना चाहिए। आजकल यश या द्रव्य-अर्जन के लिए पुस्तकों के रूप में पक्षपातपूर्ण बहुत कुछ (अपनी समझ से लिखने की परिपाटो चल पड़ी है और परीक्षा दुष्कर है। अतः आधुनिक लेखकों की पुस्तकें गहो पर स्वीकार नहीं की जानी चाहिए । जिनवाणी के संरक्षण का यह एक उपाय है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146