Book Title: Anekant 1991 Book 44 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 45
________________ जिनसेन के अनुसार ऋषभदेवका योगवाम करे। दो सो गांवों का खवंट, चारसो गांवो का नदी किनारे नियम बनाना प्रारंभ कर दिया और कई नियम बनाए। द्रोणमुख, आठसो गांवों पर राजधानी स्थापित की। उनमें सबसे प्रमुख थे विवाह व्यवस्था के। उपरोक्त प्रकार मे नाभिराय के साम्राज्य की रचना विवाह व्यवस्था- निगम इस पकार रखे करके इन्द्र तो आज्ञापालन करके स्वर्ग चला गया। गएऋषभदेव ने तब प्राजीविका को म्यवस्था को हाथ में लिया () शूद्र, केवल शूद्र कन्या के साथ हो विवाह करे। जो इस प्रकार रखी गई (२) वैश्य, वैश्यकन्या और शूद्र कन्या के साथ विवाह (१) असि-शस्त्र धारण कर सेवा करना। () मषि- लिखना। (३) क्षत्रिय, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र कन्या के साथ (३) कृषि-जमीन जोतना-बोना । विवाह करे। (४) विद्या- शास्त्र पढ़ाना, नृत्य गायन करना। १४) ब्राह्मण, इस वर्ण को स्थापना तो करेगे भरत (५) वाणिज्य- व्यापार करना । परन्तु भगवान् ने नियम बनाया कि ब्राह्मण (६) शिल्प---हाथ की कुशलता जैसे चित्र खीचना, ब्राह्मण क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र कन्या के साथ' फूल पत्ते काटना आदि। भी विवाह कर सकता था। आजीविका के साधनो का इस प्रकार छह भागों में दण्ड व्यवस्था विभाजन करने के पश्चात् भगवान वृषभदेव ने लोगो को यदि कोई वर्ण के लिए निश्चित प्रजीविका छोड़कर निम्न प्रकार वर्षों में बांटा - दूसरे वर्ण की आजीविका करे तो वण्ड का पात्र होगा यह क्षत्रिय-इन्हें भगवान् ने अपनी दोनों भज ओ मे मुख्य नियम था। हा, मा, धिक् इन तीन प्रकार के दण्डो की व्यवस्था शास्त्र धारण कर शस्त्र विद्या द्वारा मतगण की शिक्षा . दी। बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है इस मत्स्य वैश्य- इन्हे । गवान् उमओ के यात्रा करना दिखलाकर परदेशगमन व व्यापार करना सिखाया। न्याय को बंद किपा गया। द देने के लिए बण्ड घर नियुक्त किए गए ताकि दुष्ट जनों का निग्रह किया जा शद्र- इन्हे अपने पैरो से ग्वृत्ति (नीच वृत्ति) सेवा सके । राजाओ का काम था बेगार कराना, दण्ड देना व सुश्रुषा करने के लिए कायम किया, इन शूद्रो को कारु, कर वसूल करना किन्तु करो द्वारा धन की वसूली मे अकारु, स्पृश्य और अस्पृश्य इस प्रकार विभक्त किया। अधिक पीड़ा न हो ऐसो हिदायत की गई। कारु जैसे धोबी, स्पृश्य जैसे नाई और प्रजाब ह्य लोगो को यह सब कर लेने के बाद सम्राट् वषगदेव ने हार, अस्पृश्य करार दि ।। अकम्पन, काश्यप और सोमप्रभ क्ष वयो को महामाण्डलिक बाह्मण-इस वर्ण की भगवान् ने स्थापना तो नहीं घोषित किया और उनपे प्रत्येक के नीचे चार हजार की परन्तु भविष्य में उनके लिए पढ़ना-पढ़ाना यह व्यव राजा रखे गए। सोमप्रभ को फरराज, हरि अथवा साय निश्चित किया। हरिकान्त को हरिवंश का राजा, कम्पन अथवा श्रीधर इतनी व्यवस्था करने कराने के पश्चाद् भगवान् का को नायवंशका नायक, काश्या अथवा मघवा को उग्रवश स्वयं उनके पिता नअपना मुकूट उतार कर उनके सर का राजा घोषित किया। महामाण्डलिको के ऊपर कच्छ पर रखकर बडी धूमधाम से राज्याभिषेक किया । व महाकच्छ प्रधिराज स्थापित किः । बाहुबली को युवराज बनाया गया। इतना बड़ा साम्राज्य और उसकी इस प्रकार से राज्य काल व्यवस्था स्थापित करने के कारण भगवान के कई नाम पड़ राज्यभार संभालते ही भगवान ने प्रजा लिए गए (शेष पृ.११ पर)

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