Book Title: Anekant 1991 Book 44 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 23
________________ जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर महावीर डा० हेमन्त कुमार जैन किया गया है वहां पर उन्हें ज्ञातपुत्र (पाली नातपुत्त) भी कहा गया है। क्योंकि वे ज्ञातृवशीय थे बिहार की जथरिया जाति अब भी अपने-आप को महावीर का वशज मानती है। तीर्थंकर परम भट्टारक देवाधिदेव भगवान् महावीर को लाखों जनमानस उन्हे अंतिम पौबीसवां तीर्थकर स्वीकार करते हैं। इतिहास उन्हें पुरुष की तरह जानता है। जिस युग मे महावीर ने जन्म लिया था, उसी युध में उनके समकालीनों मे केशकबली, मक्खली, गोशाल पबुद्धकच्चायन, पूरणकश्यप, संजय वेलट्टपुत्त और तथागत बुद्ध प्रभूति जैसी धार्मिक पुण्य विभूतिया थी । और विश्व के जाने माने महा-मानव ग्रीम मे महात्मा सुकरात, पारस में महात्मा जरथुस्त तथा चीन मे लाओत्से और कन्फ्यूशिस आदि ने अपने-अपने क्षेत्र मे क्रान्तिला दी थी। महावीर बुद्ध समकालीन थे । बिहार राज्य में आज से लगभग २५८७ वर्ष पूर्व वैशाली ( वसाढ़ पटना से ३० मील उत्तर मे ) एक समृद्धशाली राजधानी थी। इसके आस-पास हो कुण्डपुर या क्षत्रियकुण्ड के महाराजा सिद्धार्थ एवं उनकी महारानी त्रिशला ( प्रियकारिणी) की कोख से भगवान् महावीर का जन्म हुआ था। भगवान् महावीर का वाल्यावस्था का नाम वर्धमान था, एक बार भगवान महावीर अपने साथियों के साथ मैदान में खेलने के लिए गये वहा खेलते समय एक साथ आ गया, साप को देखकर उनके सभी साथी भाग गये, लेकिन वर्धमान निडर होकर वही बड़े रहे और साथ को अपने वश में कर लिया, इसी घटना के कारण सभी साथी उन्हें महावीर नाम से पुकारने लगे । जैन दर्शन साहित्य मे उन्हें वीर, अतिवीर, सम्मतिवीर, महावीर और वर्धमान यादि नामों से भी जाना जाता है उनकी अपनी और अनेक विशेषताओं एवं गुणों के कारण शतपुत्र, वैशालीय नामां से भी जाना जाता है। वान् महावीर प्रव्रजित होने के बाद पार्श्वनाथ की निर्ग्रन्थ परम्परा में दीक्षित हुए थे। इसलिए बौद्ध साहित्य में उनके लिए नि (पानी निगण्ठ) नाम से ही सम्बोधित महावीर ने तीस वर्ष को अवस्था मे राजकीय भोगोपभोगों का परित्याग कर दिया था, और आध्यास्मिक शाति की खोज के लिए मुनि दीक्षा धारण कर ली। महावीर दिगम्बर वेष धारण कर साधना और तपश्चरण में तल्लीन होकर बारह वर्ष तक कठोरतम यातनाओ के पश्चात् अपनी शारीरिक दुर्बलताओं पर विजय प्राप्त कर सके। जिस समय महावीर ने घर त्याग किया था और बारह वर्ष वनवास के बाद सर्वप्रथम देशना (दिव्यध्वनि) राजगृही के समीप विपुलाचल पर्वत पर की थी उस समय श्रेणिक विम्बसार राजगृही का शासक था । लगातार ३० वर्ष तक वह मगध देश के विभिन्न इलाकों में बुद्ध की तरह बिहार करते रहे और जैन धर्म का प्रचार किया । ईसा से ५२७ वर्ष पूर्व महावीर ७२ वर्ष की आयु मे पावापुर से निर्वाण हुए तभी से सम्पूर्ण भारतवर्ष में पावन दीपावली पर्व प्रचलित हुआ है । "महावस्तु" मे लिखा है कि बुद्ध ने वैशाली के अलारा एवं उड्डुक में अपने प्रथम गुरू की खोज की थी और उनके निर्देशन मे जैन बन कर रहे। भगवान् महावीर की माताजी चेतक वश से सबंधित थी, जो विदेह का सर्वशक्तिमान् लिच्छवि शासक था । जिसके इशारे मात्र से मस्ती एवं लिच्छवि लोग पर मिटने को तैयार रहते थे। भगवान् महावीर ने बयालिस वर्ष की अवस्था तक सम्पूर्ण मनन-चिन्तन करके समाज के समक्ष कई उदाहरण

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