Book Title: Anekant 1991 Book 44 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 22
________________ २० वर्ष ४४ कि० पृष्ठ ७७ ७८ ८० ८५ τε ६४ ex १०४ १२१ १३७ १४२ १४२ १५३ १६२ १६२ १६३ १६३ ૪ १६८ १६८ १७५ १७६ १७६ १६१ १६४ १६५ १९८ पंक्ति २४ २१ २० २२-२३ १३ ५ १६ २५ १५ १६ १ २६ x x x w a w २२ २२ १२ & २६ २२ २३ १३ १३ १६ २५ ४ १३ १० अशुद्ध अखातगुणे इससे संख्यात क्षेत्र के स्पर्श उसका जो असंख्यातव भाग अथवा संख्यातवां भाग लब्ध आवे उतनी असंख्यात भाग को संखेज्जदिभागेण होज्ज ? भाग प्रमाण होना चाहिए ? पर्याय राशि के बुद्धी का संज्ञी जीव अजिवो इस भव्यशरीर वाले के (१) २६=१ (२) ३५६=२ असख्यातव अनेकान्त ये उस गुणस्थान मे उस गुणस्थान में ॥४॥ २०१६, १७८ । संख्या शुद्ध असंख्यातगुणे यहाँ से संख्यात क्षेत्र को स्पर्श जो लब्ध आवे उसके अमख्यातवें अथवा संख्यातवें भागराशि असंख्यात बहुमान को संखेज्जदिभागे ण होज्ज ? [ नोट:-पू. ९३ पर ११वी पक्ति मे जो कहा गया है कि “तिरियलोगस्स संसेज्जदिभागे" संख्यातवां एकेन्द्रियो में एकेन्द्रियों में सासादन सम्यग्दृष्टियों में सासादन सम्यग्दृष्टि गुणस्थान सहित सासादन गुणस्थानवर्ती उपपाद सबधी सासादन गुणस्थानवर्ती जीवोका उपपाद सबंध ' (2 x ३ ) = २६ वर्गराजू या प्रतरराज् (xv) = २५६ ७ ૪૬૪૬ सूच्यंगुल के विपाकी ही है वे आकाश के प्रदेश के संख्यातवा उस पर यह शका है ] भाग क्षत्र में नहीं होना चाहिए ? स पर्याप्त राशि के बुद्धि का आहारक जीव X X X X X इस भविष्यकाल में स्पर्शनविषयक शास्ज्ञ के शायक के (१) २६६१ (२) २६ = २ व ૪૬૪' ! " सूच्यंगुल के विपाकी ही है" वे देशोन आकाश के प्रदेश संख्यात ॥५॥ २०१६, १२० [देखो मूल प्रकृत संख्या (क्रमश:)

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