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२६, वर्ष ४४,कि०१
उपादान पर ही आ रहा है। देवशास्त्र गुरु को इष्ट निमित्त चाहिए । शास्त्र-स्वाध्याय करना चाहिए यह नहीं कहना कहा सो भी इसलिए कि कषाय का होना अनिष्ट है और चाहिए क्योकि अभी तो कार्य हा भी नहीं यह कैसे कह कषाय का न होना इष्ट है ये कषाय के न होने में अव- सकते हैं। इसका उत्तर है कि एक सामान्य कथन है और लम्बन है इसलिए उपचार से इष्ट कहा है, मूल में तो ये एक व्यक्ति अथवा कार्य विशेष की अपेक्षा कथन है। इष्ट नहीं परन्तु कषाय का मंद होना या न होना इष्ट है। परन्तु सामान्य कथन में किसी का कार्य हो या न हो उसमें इसी प्रकार देवादि अनिष्ट नहीं है परन्तु वे कषाय के उस रूप के निमित्तपने की शक्ति को देख कर आचार्यों ने होने में महयोगी और कषाय का होना अनिष्ट है इम- उस कार्य के लिए उनका सहयोग मिलाने का उपदेश लिए इन्हें उपचार से अनिष्ट कहा है।
दिया । मुलेठी में कफ गलाने की शक्ति है किसी का कफ उपादान जिस प परिणमन करने के सन्मुख होता गले या न गले उसकी शक्ति का निषेध नहीं कर सकते। है वह बाहरी पदार्थों को उसी रूप के कार्य के लिए सह- वह पंसारी की दुकान पे पड़ी है तब भी उसमें वह शक्ति योगी बना लेना है। हमारे में एक ऐमी धारणा बनी हुई विद्यमान है और इसी वजह से वैद्य किसीका कफ गालने को है कि कोई गाली दे तो क्रोध करना ही है, यही कारण है उसका उपयोग बताता है जब कि अभी कार्य तो हा ही नही किरोसा मगोग जड़ते ही अपनी धारणा के वसीभूत हम है। हमारे लिए निमित्त वह तभी कहलाएगी जब हमारा बिना गोचे समझे क्रोध कर लेते है । हम उसका अवलम्बन कफ गलेगा। परन्तु कफ गालने का निमित्तपना उसमे है लेने को तैयार ही रहते है और अनिष्टपना पहले से मान यह मानकर चलना होगा । यही बात देवशास्त्र गुपके रखा है। इसलिए ऐसा लगता है कि इसकी गाली निकालने प्रति है इसलिए उनका सहारे का उपदेश दिया गया है। से क्रोध हुआ या किया परन्तु गहराई से देखा जावे तो एक सवाल है कि किसी को निमित्त बनावे या न इसका पहले से नकही किया हुआ है कि ऐसा होने पर बनावे क्या यह हमारी स्वतत्रता है या निमित्त के उपऐसा करना । इस गलत मान्यता को तोड़े और यह निर्णय स्थित होने पर उसको निमित्त बनाना ही पड़ेगा? ऐसा
कि कोई गारी निकालेगा तब भी मैं चाहू तो शांत रह नही है, निमित्त तो हर वम उपस्थित ही है अगर उपस्थिति -कता। मेरे को आज ऐमा ही शान्त रहना है, इस में निमित्त बनाना ही पड़े तो संसार से वस्तु का अभाव
1.:. वेष्टा-पटले की मान्यता अथवा पादत को तो होगा नही और निमित्त की उपस्थिति मिटेगी नहीं 131:।ग । धान नब बातो मे लागू पड़ती है। जब और हमारा विकार मिटेगा नही। ज्यादातर उदाहरण तमनमो भयस्था है तब तक हम जाने अनजाने, उस जो दिए जाते हैं वे पुद्गल के दिए जाते हैं और पुद्गल हमान नहीं नोने पर भी हर उपना अवलम्बन मैं अपनी समझदारी नहीं रहती अतः १०० गर्मी मिलेगी .:ो रग रूप परिण पन कर जाते हैं जब तक तो पानी को भार बनना ही पड़ेगा। किसी ने पानी के - हातात इसकी अपनी कमजोरी की बर्तन को आग पर रख दिया अब उस पानी को गर्म होना
मा किया है कि ऐ. संयोग मे न जा, न ही पड़ेगा। धी को धूप में रखा उसको पिघलना ही गने -पग भएका लम्बन ले। यह इस वजह से पड़ेगा। इन सबको देख कर हमने भी यह समझ लिया -श्रीविह हमारग कर देगे परन्तु उन सयोग के कि हमतो निमित्त के अधीन है। स्फटिक के नीचे हक ग्दा : में तू परी कमी-मजोरी के कारण अपना बुरा लगाने पर लाल होगा ही। परन्तु चैतन्य के बारे में ऐसा र मा म अरछ सोगा: तू चाहे तो अपना भला
नहीं है । पुद्गल के बारे में एक व्यक्ति अलग है जो वर्तन कर मकाना : .
को पानी पर रखता है और पानी और भाग का निमित्त अब एक सवाल है कार्य होने के बाद निमित्त कह- नैमित्तिकपने को मिला देता है और कार्य हो जाता है। जाता है अथवा पहले से ही निमित्तपना है। क्योंकि कार्य परन्तु बाहरी संयोग मिलने पर भी चेतन चाहे तो उसका ने के बाद निमित्त कहा जाता है तब मन्दिर में जाना अवलम्बन ले अथवा न ले, किस कार्य के लिए ले यह भी