Book Title: Anekant 1991 Book 44 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 20
________________ पृष्ठ पंक्ति चित्र संबंधी तृतीय पृ० आ. नं १८ शंका-समाधान पृ. १४ ५ विषय परिचय पृ १७ १ " 11 37 १७ "1 १८ ३१ मूल पृ. १० २८ ११ २६ ११ २७ ११ २७ १३ २५ १५ १८ ३४ २६ ३५ १६ ४० २८ ४१ ४१ xx xx xx xx ४१ धवल पु० ४ का शुद्धिपत्र निर्माता - जवाहरलाल मोतीलाल बकलावत; भीण्डर (राज०) ४३ २ ४६ १० ܘ: २२ २३ १५-१६ ४६ २३ ४६ २४ ૪૬ २५ अशुद्ध ( पृ० ३५) डेबढ़ा एक राजू के प्रतर या वर्ग प्रमारण है एक राजू चौड़ा सात राजू लम्बा ( आगत ) और एक लाख योजन ऊंचा है । अथवा १४२८५ योजन बाहल्यरूप जगत्प्रतर प्रमाण घनफल वाला है। [ देखो - पृ० ३१, ३७, ४१, ४७, ६१ आदि ।] योजन व्यास वाला तथा एक लाख योजन ऊँचा वर्तुलाकार क्षेत्र [देखो मूल पृ. ३१] X X X व्यास वाला वर्तुलाकार क्षेत्र और गमनागमन कर रहे हैं अन्योन्य गुणि घनागुलं । एकस्मिन् गुणिता प्रमाण को अर्धमात्र निष्कंभ उत्सेध के उत्सेध के १६८ (REF 12 ) १० १६८१ २० पूर्वोक्त गुणकारी से ०२१६८ इन गुणकारों से चाहिये । सयत की उत्कृष्ट अवगाहना परिधि ५००x१६+१६ शुद्ध ( पृ० ३५-३६) डेढ़ा ८८८१२००० ३६६१२ धनुष । ८८८१२००० ६६ x - ३६६१२ १ अन्योन्यगुणिते कृते घनगुलम् | एकैकस्मिन् गुणिता जाता विस्तार को अर्द्ध-अर्द्ध मात्र विष्कंभ आयाम के उत्सेध उसके (x)' १६८१ (१६ × २ × १६८ पूर्वोक्त "गुणकार गुणित अवगाहना गुणित राशि से यानी पूर्वोक्त क्षेत्रों से इन राशियों से चाहिए । संयत का उत्कृष्ट क्ष ेत्रफल परिषि (१६) + १६ ८८६८२२००० वर्ग धनुष ३६६१२ ८८८२२००० ३६११२ १६ ・x (2)`

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