Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 23
________________ अदिहुग्गमण अत्थमणे भवे पुढवीए गोलया किमी ।। अज्झयणं-२, उद्देसो-३ - - - - - - - - - - - - - [३०८] भव-काय-द्वितीए वेएत्ता तं तेहिं किमियत्तणं जइ कह वि लहंति मनुयत्तं तओ ते हॉति नपुंसगे ।। [३०९] अज्झवसाय-विसेसं तं पवहंते अइकूर-घोर-रोदं तु तारिसं वम्मह-संधुक्किया मरितुं जम्मं जंति वणस्सई ।। [३१०] वणस्सई गए जीवे उड्ढपाए अहोमुहे चिटुंतिऽनंतयं कालं नो लभे बेइंदियत्तणं [३११] भव-काय-द्वितीए वेइत्ता तमेग-बि-ति-चरिंदियत्तणं तप्पुव्व-सल्ल-दोसेणं तेरिच्छेसूववज्जिउं [३१२] जइ णं भवे महामच्छे पक्खीवसह-सीहादयो अज्झवसाय-विसेसं तं पडुच्च अच्चंत-कूरयरं कुणिममाहारत्ताए पंचेंदियवहेणं य अहो अहो पविस्संति जाव पुढवीउ सत्तमा [३१४] तं तारिसं महाघोरं दुक्खमनुभविउं चिरं पुणो वि कूरतिरिएसु उववज्जिय नरयं वए [३१५] एवं नरय-तिरिच्छेसुं परियदृते विचिट्ठति वासकोडिए वि नो सक्का कहिउं जं तं दुक्खं अनुभवमाणणे ।। [३१६] अह खरुट्ट-बड़ल्लेसं भवेज्जा तब्भवंतरे सगडायड्ढण-भरुव्वहण खु-तण्ह-सीयायवं [३१७] वह-बंधणंकणं डहणं नास-भेद निलंछणं जमलाराईहिं कुच्चादिहिं कुच्चिज्जंताण य । जहा राई तहा दियहं सव्वद्धा उ सुदाररुणं [३१८] एमादी-दुक्ख-संघट्ट अनुहवंति चिरेण उ पाणे पयहिंति कह कह वि अटज्झाण-दुहट्टिए [३१९] अज्झवसाय-विसेसं तं पडुच्चा केइ । कह कह वि लब्भंती मानुसत्तणं तप्पुव्व-सल्ल-दोसेणं मानुसत्ते वि आगया [३२०] भवंति जम्म-दारिद्दा वाही-खस-पाम-परिगया एवं अदिट्ठ-कल्लाणे सव्व-जनस्स सिरि-हाइउं [३२१] संतप्पंते दढं मनसा अकयतवे गिहणं वए अज्झवसाय-विसेसं तं पडुच्चा केइ तारिसं [३२२] पुणो वि पुढविमाईसुं भमंती ते दु-ति-चउरो पंचिंदिएसु वा । तं तारिसं महा-दुक्खं सुरोदं घोर-दारुणं [३२३] चउगइ-संसार-कंतारे अनुहमाणे सुदूसहं दीपरत्नसागर संशोधितः] [22] [३९-महानिसीह - - - - - - - - - - -

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