Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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गंधव्ववेय-पउंजणाहिज्जण-कुसीले, पुरिस-इत्थी-लक्खण-पउंजणज्झावण-कुसीले, काम-सत्थपउंजणाहिज्जण-कुसीले, कुहुगिंद जाल-सत्थ-पउंजणाहिज्जण-कुसीले, आलेक्ख-विज्जाहिज्जण-कुसीले, लेप्प-कम्म-विज्जा-हिज्जण-कुसीले, वमन-विरेयण-बहुवेल्लि जाल-समुद्धरण-कढण-काढण-वणस्सइ-वल्लि मोडण-तच्छणाइ बहुदोस-विज्जग सत्थ-पउंजणाहिज्ज-नज्झावण-कुसीले एवं जाण-जोग-पडिजोग-चुण्णवण्ण-धाउव्वाय राय-दंडनीई सत्थ-असणि-पव्व अग्घकंड-रयणपरीक्खा रसवेह-सत्थ समच्च-सिक्खा गूढअज्झयणं-३, उद्देसो
मंत-तंत काल-देस-संधि-विग्गहो-वएस-सत्थ-सम्म-जाण-ववहार निरूवणऽत्त-सत्थ-पउंजणाहिज्जण-अपसत्थ नाणकुसीले, एवमेएसिं चेव पाव-सुयाणं वायणा पेहणा परावत्तणा अनुसंधणा सवणाऽयण्णण-अपसत्थनाण-कुसीले ।
[४८९] तत्थ जे य ते सुपसत्थ-नाण-कुसीले ते वि य दुविहे नेए आगमतो नोआगमओ य तत्थ य आगमओ सुपसत्थं पंच-प्पयारं नाणं असायंते सुपसत्थ-नाण-धरे इ वा आसायंते सुपसत्थ-नाण कुसीले ।
[४९०] नो आगमओ य सुपसत्थ-नाण-कुसीले अट्ठहा नेए तं जहा-अकालेणं सुपसत्थनाणाहिज्जणऽज्झावण-कुसीले, अविनएणं सुपसत्थ नाणाहिज्जणज्झावण कुसीले, अबहुमानेनं सुपसत्थ नाणाहिज्जणकुसीले अनोवहाणेणं सुपसत्थ नानाहिज्जणऽज्झावण-कुसीले, जस्स य सयासे सुपसत्थ सुत्तत्थोभयमहीयं तं निन्हवण-सुपसत्थ-नाण-कुसीले, सर-वंजण-हीनक्खरिय-ऽच्चक्खरिया हीयऽज्झावण सुपसत्थ नाण-कुसीले, विवरीय सुत्तत्थोभयाहीयज्झावण सुपसत्थ-नाण-कुसीले संदिद्ध-सुत्तत्थोभयाहीय ज्झावण सुपसत्थनाण-कुसीले ।
__ [४९१] तत्थ एएसिं अट्ठण्हं पि पयाणं गोयमा! जे केइ अनोवहाणेणं सुपसत्थं नाण-महीयंति अज्झावयंति वा अहीयते इ वा अज्झावयंते इ वा समणुजाणंति वा ते णं महा-पावकम्मे महती सुपसत्थनाणस्सासायणं पक्व्वंति ।
[४९२] से भयवं! जइ एवं ता किं पंच-मंगलस्स णं उवहाणं कायव्वं?, गोयमा ! पढमं नाणं तओ दया दयाए य सव्व-जग-जीव-पाण-भय-सत्ताणं अत्तसम-दरिसित्तं, सव्व-जग-जीव-पाण-भूय-सत्ताणं अत्तसम दंसणाओ य तेसिं चेव संघट्टण-परियावण-किलावणोद्दावणाइ-दुक्खु-पायण-भय विवज्जणं, तओ अनासवो अनासवाओ य संवुडासवदारत्तं संवुडासव-दारत्तेणं च दमो पसमो, तओ य सम-सत्तु-मित्तपक्खया सम-सत्तु-मित्त-पक्खयाए य अराग-दोसत्तं तओ य अकोहया अमानया अमायया अलोभया अकोह-मान-माया-लोभयाए य अकसायत्तं, तओ य सम्मत्तं समत्ताओ य जीवाइ-पयत्थ-परिन्नाणं तओ य सव्वत्थ-अपडिबद्धत्तं सव्वत्थापडिबद्धत्तेण य अन्नाण-मोह-मिच्छत्तक्खयं, तओ विवेगो विवागाओ य हेय-उवाएय-वत्थ-वियालेणे-गंत-बद्ध-लक्खत्तं तओ य अहिय-परिच्चाओ हियायरणे य अच्चतमब्भुज्जमो तओ य परम पवित्तुत्तम-खंतादिदसविह-अहिंसा-लक्खण-धम्माणुट्ठानेक्क करण-कारावणासत्तचित्तयाए |
तओ य खंतादि दसविह अहिंसा लक्खण धम्माणुढाणिक्क करण कारावणा सत्त-चित्तयाए य सव्वुत्तमा खंती सव्वुत्तमं मिउत्तं सव्वुत्तं अज्जव-भावत्तं सव्वुत्तमं सबज्झब्भंतरं सव्व-संगपरिच्चागं सव्वुत्तमं सबज्झब्भंतर-दुवालसविह-अच्चंत-घोर-वीरुग्ग-कट्ठ-तव-चरणाणुट्ठाणाभिरमणं सव्वुत्तमं सत्तरसविह-कसिण-संजमाण्ट्ठाण परिपालणेक्क बद्ध-लक्खत्तं सव्वुत्तमं सच्चगिरणं छक्काय-हियं । अनिगूहिय बल-वीरिय-पुरिसक्कार परक्कमपरितोलणं च । सव्वुत्तम-सज्झायझाण-सलिलेणं पावकम्म[दीपरत्नसागर संशोधितः]
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[३९-महानिसीह
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