Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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तेण य कमागय-गुरु दरिद्द-नामं स नासेड़ [५१२] सामंता चक्कहरं चक्कहरो सुरवइत्तणं कंखे, इंदो तित्थयरत्तं ।
तित्थयरे उण जगस्सा वि जहिच्छिय-सुह-फलए [५१३] तम्हा जं इंदेहिं वि कंखिज्जइ एग-बद्ध-लक्खेहिं
अइसाणुराय-हियएहिं उत्तमं तं न संदेहो
[५१४] ता सयल देव-दानव गह-रिक्ख सुरिंद-चंदमादीणं अज्झयणं-२, उद्देसो-३
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तित्थयरे पुज्जयरे ते च्चिय पावं पणासेंति [५१५] तेसि य तिलोग-महियाण धम्मतित्थंकराणं जग-गुरुणं ।
भावच्चण दव्वच्चण भेदेण दुह ऽच्चणं भणियं ।। [५१६] भावच्चण-चारित्ताणुट्ठाण कद्ग-घोर-तव-चरणं ।
दव्वच्चणविरयाविरय सील-पूया सक्कार दानादी ।। [५१७] ता गोयमा ! णं एसे ऽत्थ परमत्थे ! तं जहा
भावच्चणमुग्ग-विहारया य दव्वच्चणं त जिन-प्या ।
पढमा जतीण दोण्णि वि गिहीण पढम च्चिय पसत्था ।।
[५१८] एत्थं च गोयमा केई अमुणिय-समय-सब्भावे ओसन्न-विहारी नीयवासिणो अदिट्ठपरलोग-पच्चवाए, सयंमती, इढि-रस-साय-गारवाइमुच्छिए, राग-दोस-मोहाहंकार-ममी-कारइसु पडिबद्धे, कसिण संजम-सद्धाम्म-परम्मुहे, निद्दय-नित्तिंस-निग्घिण-अकुलण-निक्किवे, पावाय-रणेक्क-अभिनिविट्ठ-बुद्धी एगतेणं अइचंड-रोद्द-कूराभिग्गहिय-मिच्छ-द्दिहिणो, कय-सव्व-सावज्ज-जोग-पच्चक्खाणे विप्प-मुक्कासेससंगारंभ परिग्गहे तिविहं तिविहेणं पडिवण्ण-सामाइए य दव्वत्ताए न भावत्ताए नाम-मेत्तमंडे अनगारे महव्वयधारी समणे वि भवित्ता णं एवं मण्णामाणे सव्वहा उम्मग्गं पवत्तंति, जहा-किल अम्हे अरहताणं भगवंताणं गंध-मल्ल-पदीव-सम्मज्जणोवलेवण-विचित्त-वत्थ-बलि-धूयाइ-तेहिं पूया-सक्कारेहिं अनुदियहमब्भच्चणं पकुव्वाणा तित्थुच्छप्पणं करेमो, तं च वायाए वि नो णं तह त्ति समणु-जाणेज्जा |
से भयवं ! केणं अद्वेणं एवं वच्चइ, जहा णं तं च नो णं तह त्ति समाजाणेज्जा ? गोयमा! तयत्थानुसारेणं असंजम-बाहुल्लं असंजम-बाहुल्लेणं च थूलं कम्मासवं थूल-कम्मासवाओ य अज्झवसायं पडुच्चा थूलेयर-सुहासुह-कम्मपयडी-बंधो सव्व-सावज्ज-विरयाणं च वय-भंगो, वयभंगेणं च आणा इक्कमे आणाइक्कमेणं तु उम्मग्ग-गामित्तं उम्मग्ग-गामित्तेणं च सम्मग्ग-विप्पलोयणं उम्मग्ग-पवत्तणं [च), सम्मग्ग-विप्पलोयणेणं उम्मग्ग-पवत्तणेणं च जतीणं महती आसायणा तओ य अनंत-संसाराहिंडणं, एएणं अटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-जहा णं गोयमा ! नो णं तं तह त्ति समणुजाणेज्जा ।
[५१९] दव्वत्थवाओ भावत्थयं तु दव्वत्थओ बहु गुणो भवउ तम्हा ।
अबुहजने बुद्धीयं छक्कायहियं तु गोयमा ऽणुढे ।। [५२०] अकसिण-पवत्तगाणं विरया ऽविरयाण एस खल् जुत्तो ।
जे कसिण-संजमविऊ पुप्फादीयं न कप्पए तेसिं तु] ।।
[५२१] किं मन्ने गोयमा ! एस बत्तीसिंदाणु चिट्ठिए । दीपरत्नसागर संशोधितः]
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[३९-महानिसीह
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