Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 119
________________ वय-नियम-नाण-चरित्त, तवाइ-सयल-भुवणेक्क, मंगल-अहिंसा-लक्खण-संताइ, दस-विह धम्माणुट्ठाणेक्कंतबद्ध-लक्खो | सव्वावस्सग-तक्काल-करण-सज्झाय-झाणं आउत्तो संखाईय-अनेग-कसिण-संजम-पएस् अविखलिओ, संजय-विरय-पडिहय-पच्चक्खाय-पाव-कम्मो अनियाणो माया-मोस-विवज्जिओ, साहू वा साहूणी वा एवं गुण-कलिओ, जइ कह वि पमाय-दोसेणं असई कहिंचि कत्थइ वाचा इ वा मनसा इ वा ति-करण-विसुद्धीए सव्व-भाव-भावंतरेहिं चेव संजममायरमाणो असंजमेणं छलेज्जा, तस्स णं विसोहि-पयं पायच्छित्तमेव । तेणं पायच्छित्तेणं गोयमा! तस्स विसुद्धिं उवदिसिज्जा, न अन्नह त्ति । तत्थ णं जेसुं जेसं ठाणेसं जत्थ जत्थ जावइयं पच्छित्तं तमेव निमुकियं भण्णइ । से भयवं ! के णं अटेणं भण्णइ जहा णं-तं एव निदृकियं भण्णइ ? गोयमा! अनंतरानंतरक्कमेणं इणमो पच्छित्त-सुत्तं अनेगे भव्व सत्ता चउगइ संसार चारगाओ बद्ध पुट्ठ निकाइय दुव्विमोक्ख घोर पारद्ध कम्म नियडाइं संचुण्णिऊण अचिरा विमुच्चिहिंति । अन्नं च इणमो पच्छित्तसुत्तं अनेगगुणगणाइण्णस्स दढ-व्वय-चरित्तस्स एगंतेण जोगस्स एव विवक्खिए पएसे चउक्कण्णं पन्नवेयव्वं, नो छक्कण्णं | तहा य-जस्स जावइयेणं पायच्छित्तेणं परम-विसोही भवेज्जा, तं तस्स णं अनुयट्टणाविरहिएणं धम्मक्क-रसिएहिं वयणेहिं जह-ट्ठियं अणुणाहियं तावाइयं चेव पायच्छित्तं पयच्छेज्जा । एएणं अटेणं एवं वुच्चइ जहा णं गोयमा! तमेव निट्टंकियं पायच्छित्तं भण्णइ । ___ [१३७६] से भयवं कइविहं पायच्छित्तं उवइ8 ? गोयमा ! दसविहं पायच्छित्तं उवइटुं, तं च अनेगहा जाव णं पारंचिए । [१३७७] से भयवं केवइयं कालं जाव इमस्स णं पच्छित्त-सुत्तस्सानुट्ठाणं वट्टिही गोयमा! जाव णं कक्की नाम रायाणे निहणं गच्छिय एक्क-जियाययण-मंडियं वसुहं सिरिप्पभे अनगारे । भयवं! उड्ढे पुच्छा, उड्ढं न केइ एरिसे पुण्ण-भागे होही, जस्स णं इणमो सुयक्खंधं उवइसेज्जा | [१३७८] से भयवं ! केवइयाइं पायच्छित्तस्स पयाइं ? गोयमा ! संखाइयाइं पायच्छित्तस्स णं पयाई । से भयवं ! तेसिं णं संखाइयाणं पायच्छित्तस्स पयाणं कि तं पढणं पायच्छित्तस्स णं पयं ? गोयमा ! पइदिन-किरियं । से भयवं ! किं तं पइदिन-किरियं ? गोयमा ! जं अनुसमयं अहन्निसापाणीवरम जाव अन्टेयव्वाणि संखेज्जाणि आवस्सगाणि । से भयवं ! केणं अटेणं एवं वुच्चइ जहा णं-आवस्सागाणि? गोयमा! असेस-कसिणट्ठ कम्म कक्खयकारि उत्तम-सम्म-दंसण-नाण-चारित्त अच्चंत-घोर-वीरुग्ग-कट्ठ सुदुक्कर-तव-साहणट्ठाए परुविज्जति नियमिय विभत्तुद्दिट्ठ-परिमिएणं काल-समएणं पयंपएणं अहन्निस-अनुसमयं आजम्मं अवस्सं अज्झयणं-७/ चूलिका-१ एव तित्थयराइसु कीरंति अनुद्विज्जंति, उवइसिज्जंति परूविज्जंति पन्नविज्जंति सययं, एएणं अटेणं एवं वुच्चइ गोयमा ! जहा णं-आवस्सगाणि । तेसिं च णं गोयमा ! जे भिक्खू कालाइक्कमेणं वेलाइक्कमेणं समयाइक्कमेणं अलसायमाणे अनोवउत्त-पमत्ते अविहीए अन्नेसिं च असद्धं उप्पायमाणे अन्नयरमावस्सगं पमाइय-पमाइयं संतेणं बलवीरिएणं सात-लेहडत्ताए आलंबनं वा किंचि घेत्तूणं चिराइउं पउरिया, नो णं जहुत्तयालं समणुढेज्जा, से णं गोयमा! महा-पायच्छित्ती भवेज्जा । [दीपरत्नसागर संशोधितः] [118] [३९-महानिसीह

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