Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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बंधनं लंघनं कहिम्मि कत्थइ दमण-मंकणं ।। [१४१०] नत्थणं वाहणं कहिम्मि कत्थई वहन-तालणं ।
गुरु-भारक्कमणं कहिंचि कत्थइ जमलार-विंधणं ।। [१४११] उर-पट्टि-अट्ठि-कडि-भंगं पर-वसो तण्हं-छुहं ।
संतावुव्वेग-दारिदं विसहीहामि पुणो वि हं ।। [१४१२] ता इहइं चेव सव्वं पि निय-दुच्चरियं जह-ट्ठियं ।
आलोएत्ता निंदित्ता गरहित्ता पाच्छित्तं चरित्तु णं ।। [१४१३] निद्दहेमि पावयं कम्मं झत्ति संसार-दुक्खयं ।
अब्भुद्वित्ता तवं घोरं-धीर-वीर-परक्कम ।। [१४१४] अच्चत्तं-कडयडं कहूं दुक्करं दुरनुच्चरं ।
उग्गुग्गयरं जिनाभिहियं सयल-कल्लाण-कारणं ।। [१४१५] पायच्छित्त-निमित्तेण पाण-संघार-कारयं ।
आयरेणं तं तवं चरिमो जेणुब्भे सोक्खई तणुं || [१४१६] कसाए विहली कट्ट इंदिए पंच-निग्गहं ।
मनो वई काय-दंडाणं निग्गहं धणियमारभं ।। [१४१७ आसव-दारे निरुभित्ता चत्त-मय-मच्छर-अमरिसो ।
गय-राग-दोस-मोहो हं निसंगो निप्परिग्गहो ।। [१४१८] निम्ममो निरहंकारो सरीरे अच्चंत-निप्पिहो ।
महव्वयाई पालेमि निरइयाराई निच्छिओ ।। [१४१९] हंदी हा अहन्नो हं पावो पाव-मती अहं ।
पाविट्ठो पाव-कम्मो हं पावाहमायरो अहं ।। [१४२०] कुसीलो भट्ट-चारित्ती भिल्लसूणोवमो अहं । चिलातो निक्किवो पावी कूर-कम्मीह निग्घिणो ।। [१४२१] इणमो दल्लभं लभिउं सामण्णं नाणं-दंसणं । चारित्तं वा विराहेत्ता अनालोइय निंदिया ।
गरहिय अकय-पच्छित्तो वावज्जंतो जइ अहं ।। [१४२२] ता निच्छयं अनुत्तारे घोरे संसार-सागरे । निब्बड्डो भव-कोडीहिं समत्तरंतो न वा पणो || [१४२३] ता जा जरा न पीडेइ वाही जाव न केइ मे |
जाविंदियाई- न हायंति ताव धम्म चरेत्तुं हं ।। [१४२४] निद्दहमइरेण पावाइं निंदिउं गरहिउँ चिरं ।
पायच्छित्तं चरित्ताणं निक्कलंको भवामि हं ।।
[१४२५] निक्कलुस-निक्कलंकाणं सुद्ध-भावाण गोयमा अज्झयणं-७ / चूलिका-१
तं नो नटुं जयं गहियं सुदूरामवि परिवलित्त् णं ।। [दीपरत्नसागर संशोधितः]
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[३९-महानिसीह
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