Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

View full book text
Previous | Next

Page 140
________________ अज्झयणं-८ / चूलिका-२ [१४८८] भूएसु जंगमत्तं तेसु वि पंचेंदियत्तमुक्कोसं । तेसु वि य मानुसत्तं मनुयत्ते आरिओ देसो ।। [१४८९] देसे कुलं पहाणं कुले पहाणे य जाई-मुक्कोसा । तीए रूव-समिद्धी रूवे य बलं पहाणयरं ।। [१४९०] होइ बले चिय जीयं जीए य पहाणयं तु विण्णाणं । विण्णाणे सम्मत्तं सम्मत्ते सील-संपती ।। [१४९१] सीले खाइय-भावो खाइय-भावे य केवलं नाणं । केवलिए पडिपुन्ने पत्ते अयरामरो मोक्खो ।। [१४९२] न य संसारम्मि सुहं जाइ-जरा-मरण-दुक्ख-गहियस्स | जीवस्स अत्थि जम्हा तम्हा मोक्खो उवाओ उ ।। [१४९३] आहिँडिऊण सुइरं अनंतहुत्तो हु जोणि-लक्खेसु । तस्साहण-सामग्गी पत्ता भो भो बहू इण्हिं ।। [१४९४] ता एत्थ जं न पत्तं तदत्थ भो उज्जमं कुणह तुरियं । विबुह-जन-निंदियमिणं उज्झह संसार-अनुबंधं ।। [१४९५] लहिउँ भो धम्मसुइं अनेग भवकोडि लक्खेसु वि दुल्लहं । जइनाणुट्ठह सम्म ता पुनरवि दुल्लहं होही ।। [१४९६] लद्धेल्लियं च बोहिं जो नाण्ढे अनागयं पत्थे । सो भो अन्नं बोहिं लहिही कयरेणं मोल्लेण ? || [१४९७] जाव णं पुव्व-जाइ-सरण-पच्चएणं सा माहणी इयं वागरेइ ताव णं गोयमा ! पडिबुद्धमसेसं पि बंधुयणं बहु-नागर-जनो य । एयावसरम्मि उ गोयमा ! भणियं सुविदिय-सोग्गइ-पहेणं तेणं गोविंदमाहणेणं जहा णं धिद्धिद्धि वंचिए एयावंतं कालं जतो वयं मूढे ! अहो णु कट्ठमन्नाणं दुव्विन्नेयमभागधिज्जेहिं खुद्द-सत्तेहिं अदिढ-घोरुग्ग-परलोग-पच्चवाएहिं-अतभिनिविट्ठ-दिट्ठीहिं-पक्खवायमोह-संधुक्किय-मानसेहिं राग-दोसो-वहयबुद्धिहिं परं तत्तधम्म ! अहो सज्जीवेणेव परिमुसिए एवइयं काल-समयं । अहो किमेस णं परमप्पा भारिया-छलेणासि उ मज्झ गेहे, उदाहु णं जो सो निच्छिओ मीमंसएहिं सव्वन्नू सोच्चि, एस सूरिए इव संसय-तिमिरावहारित्ता णं लोगावभासे मोक्ख-मग्गसंदरिसणत्थं सयमेव पायडीहूए ? अहो महाइसयत्थ-पसाहगाओ मज्झं दइयाए वायाओ भो भो ! जण्णयत्त-विण्हयत्त जन्नदेव-विस्सामित्त-सुमिच्चादओ मज्झं अंगया अब्भुट्ठाणारिहा ससुरासुरस्सा वि णं जगस्स एसा तुम्ह जननि त्ति भो भो ! पुरंदर-पभितीओ खंडियाओ वियारह णं सोवज्झाय-भारियाओ जगत्तयानंदाओ कसिण-किव्विस-निद्दहण-सीलाओ वायाओ । पसण्णोज्ज तुम्ह गुरू, आराहणेक्क-सीलाणं परमप्पं बलं जजण-जायण-ज्झयणाइणा छक्कम्माभिसंगेणं तुरियं विणिज्जिणेह पंचेंदियाणि परिच्चयह णं कोहाइए पावे वियाणेह णं अमेज्झाइजंबाल-पंक-पडिपुन्ना असुती कलेवरे, पविसामो वणंतं | इच्चेवं अनेगेहिं वेरग्गजननेहिं सुहासिएहिं वागरमाणं तं चोद्दस-विज्जा-ठाण-पारगं भो गोयमा! गोविंद-माहणं सोऊण अच्चंत-जम्म-जरा-मरण-भीरुणो बहवे सप्परिसे सव्वत्तमं धम्म विमरिसिउं [दीपरत्नसागर संशोधितः] [139] [३९-महानिसीह

Loading...

Page Navigation
1 ... 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153