Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 131
________________ यणयं पाणवह-समुत्थं मुसावाय-समुत्थं अदत्तादान-गहण-समुत्थं मेहुणासेवणा-समुत्थं परिग्गह-करणसमुत्थं राइ-भोयण-समुत्थं मानसियं वाइयं काइयं असंजम-करण-कारवणअनुमइ-समुत्थं जाव णं नाणदंसण-चारित्तायार-समुत्थं किं बहुणा जालइयाइं ति-गाल-चिति-वंदाणादओ पायच्छित्त-ठाणाइं पन्नत्ताइं तावइयं च पुणो विसेसेणं गोयमा! असंखेयहा पन्नविज्जति । एवं संघारेज्जा जहा णं गोयमा पायच्छित्त-सुत्तस्स णं संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ संखेज्जाओ संगहणीओ संखिज्जाइं अनुयोग-दाराइं संखेज्जे अक्खरे अनंते पज्जवे जाव णं दंसिज्जंति उवदंसिज्जति आघविज्जंति पन्नविज्जंति परूविज्जंति कालाभिग्गहत्ताए दव्वाभिग्गहत्ताए खेत्ताभिग्गहत्ताए भावाभिग्गह-त्ताए जाव णं आनुपुव्वीए अनानुपुव्वीए जहा-जोगं गुण-द्वाणेसुं, ति बेमि | [१४०२] से भयवं! एरिसे पच्छित्त-बाहुल्ले से भयवं ! एरिसे पच्छित्त-संघट्टे से भयवं ! एरिसे पच्छित्त संगहणे अत्थि केई जे णं आलोएत्ताणं निंदित्ताणं गरहित्ताणं जाव णं अहारिहं तवोकम्मं पायच्छित्तमनुचरित्ताणं सामन्नमाराहेज्जा पवयणमाराहेज्जा आणं आराहेज्जा जाव णं आयहियट्ठयाए उवसंपज्जित्ताणं सकज्जं तमढें आराहेज्जा गोयमा! णं चउव्विहं आलोयणं विंदा तं-जहा-नामालोयणं ठवणालोयणं दव्वालोयणं भावालोयणं एते चउरो वि पए अनेगहा वि उप्पाइज्जंति । तत्थ ताव समासेणं नामालोयणं नाममेत्तेण ठवणालोयणं पोत्थयाइसु-मालिहियं दव्वालोयणं नाम जं आलोएत्ताणं-असढभावत्ताए जहोवइटुं पायच्छित्तं नाणचिट्ठे | एते तओ वि पए एगते णं गोयमा ! अपसत्थे, जे य णं से चउत्थे पए भावालोयणं नाम ते ण त गोयमा ! आलोएत्ताणं निंदित्ताणं गरहित्ताणं पायच्छित्तमनुचरित्ताणं जाव णं आय-हियट्ठाए उवसंपज्जित्ताणं स कज्जुत्तमढें आराहेज्जा । से भयवं! कयरे णं से चउत्थे पए ? गोयमा ! भावालोयणं, से भयवं किं तं भावालोयणं ? गोयमा! जे णं भिक्खू-एरिस-संवेग-वेरग्ग-गए सील-तव-दान-भावन-चउ-खंध-सुसमण-धम्माराहणेक्कंत-रसिए मय-भय-गारवादीहिं अच्चंत-विप्पमुक्के सव्व-भाव-भावंतरेहिं णं नीसल्ले आलोइत्ताणं विसोहिपयं पडिगाहित्ताणं तह त्ति समनुट्ठीया सव्वुत्तमं संजम-किरियं समनुपालेज्जा [तं जहा] :- | [१४०३] कयाइं पावाइं इमाइं जेहिं अट्ठी न बज्झए | तेसिं तित्थयरवयणेहिं सुद्धी अम्हाण कीरउ ।। [१४०४] परिचिच्चाणं तयं कम्मं घोर-संसार-दुक्खदं । मनो-वय-काय-किरियाहिं सीलभारं धरेमि अहं ।। [१४०५] जह जाणइ सव्वन्नू केवली तित्थंकरे । आयरिए चारितड्ढे उवज्झाए य सुसालो ।। [१४०६] जह पंच-लोयपाले य सत्ताधम्मे य जाणए | तहाssलोएमि हं सव्वं तिलमत्तं पि ण निह्ववं ।। [१४०७] तत्थेव जं पायच्छित्तं गिरिवरगुरुयं पि आवए | तमनुच्चरेमि दे सुद्धिं जह पावे झत्ति विलिज्जए || [१४०८] मरिऊणं नरय-तिरिएसुं कुंभीपाएसु कत्थई । कत्थइ करवत्त-जंतेहिं कत्थइ भिन्नो हु सूलिए || अज्झयणं-७ / चूलिका-१ | [१४०९] घसणं घोलणं कहिम्मि कत्थई छेयण-भेयणं । दीपरत्नसागर संशोधितः] [130] [३९-महानिसीह

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