Book Title: Agam 39 Mahanisiham Chattham Cheyasuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 129
________________ समेणं सम्मग्गं समोवलभित्ताणं निव्विन्न-काम-भोगे निरणुबंधे पुन्नमहिज्जे तं च तव-संजमानुट्ठाणेणं तस्सेव तव-संजम किरियाए जाव णं गुरू सयमेव विग्घं पयरे अहा णं परेहिं कारवे कीरमाणे वा समनुवेक्खे सपक्खेण वा परपक्खेणं वा ताव णं तस्स महानुभागस्स साहुणो संतियं विज्जमाणमवि धम्म-वीरियं पणस्से | जाव णं धम्म-वीरियं पणस्से ताव णं जे पुण्ण-भागे आसन्न-पुरक्खडे चेव सो पणस्से । जइ णं नो समण लिंगं विप्पजहे । ताहे जे एवं गुणोववेए से णं तं गच्छमुज्झिय अन्न गच्छं समप्पयाइ । तत्थवि जाव णं संपवेसं न लभे ताव णं कयाइ उ न अविहीए पाणे पयहेज्जा कयाइ उ न मिच्छत्तभावं गच्छिय पर-पासंडं आसएज्जा कयाइ उ न ताराइसंगहं काऊणं अगार-वासे पविसेज्जा | अहा णं से ताहे महातवस्सी भवेत्ताणं पुणो अतवस्सी होउणं पर-कम्मकरे हवेज्जा, जाव णं एयाइं न हवंति ताव णं एगतेणं वुड्ढं गच्छे मिच्छत्ततमे, जाव णं मिच्छत्त-तमंधी-कए-बहुजन-निवहे दुक्खेणं समनुढेज्जा । दोग्गइ-निवारए सोक्ख-परंपरकारए अहिंसा लक्खणसमण-धम्मे । जाव णं एयाइं भवंति ताव णं तित्थस्सेव वोच्छित्ती जाव णं तित्थस्सेव वोच्छित्ती ताव णं सुदूर-ववहिए परम-पए जाव णं सुदूर-ववहिए परम-पए ताव णं अच्चंत सुदुक्खिए चेव भव्वसत्तसंघाए पुणो चउगईए संसरेज्जा एएणं अटेणं एवं वुच्चइ गोयमा ! जहा णं जे णं एएणेव पयारेणं कुगुरु अक्खरे नो पएज्जा से णं संघ-वज्झे उवइसेज्जा । __ [१३९१] से भयवं केवतिएणं कालेणं इहे कुगुरू भवीहंति ? गोयमा ! इओ य अद्ध-तेरसण्हं वास सयाणं साइरेगाणं समइक्कंताणं परओ भवीसुं । से भयवं ! के णं अटेणं ? गोयम ! तक्कालं इड्ढिरस-साय गारव संगए ममीकार-अहंकारग्गीए अंतो संपज्जलंत-बोंदी अहमहं ति कय-मानसे अमुणियसमय-सब्भावे गणी भवीसुं, एएणं अटेणं । से भयवं ! किं सव्वे वी एवंविहे तक्कालं गणी भवीसुं ? गोयमा एगंतेणं नो सव्वे । के ई पुण दुरंत-पंत-लक्खणे अदहव्वे णं एगाए जननीए जमग-समगं पसूए निम्मेरे पाव-सीले दुज्जाय-जम्मे सुरोद्द-पयंडाभिग्गहिय-दूर-महामिच्छदिट्ठी भविंसु । से भयवं ! कहं ते समुवलक्खेज्जा ? गोयमा ! उस्सुत्तुम्मग्ग-वत्तणुद्दिसण-अनुमइ-पच्चएण वा | - [१३९२] से भयवं! जे णं गणी किंचि आवस्सगं पमाएज्जा? गोयमा! जे णं गणी अकारणिगे किंचि खणमेगमवि पमाए, से णं अवंदे उवदिसेज्जा । जे उ णं तु सुमहा कारणिगे वि संते गणी खणमेगमवी न किंचि निययावस्सगं पमाए से णं वंदे पए दद्व्वे जाव णं सिद्धे बद्धे पार खीणट्ठकम्ममले नीरए उवइसेज्जा | सेसं तु महया पबंधेण स-हाणे चेव भाणिहिइ । [१३९३] एवं पच्छित्तविहिं सोऊणाणुह्रती अदीन-मनो । जुजइ य जहा-थामं जे से आराहगे भणिए ।। [१३९४] जल-जलण-दुट्ठ-सावय चोर-नरिंदाहि-जोगिणीण भए । तह भूय-जक्खरक्खस्स खुद्दपिसायाण मारीणं ।। [१३९५] कलि-कलए विग्घ-रोहग कंताराडइ-समद्द-मज्झे वा । दुच्चिंतिय अवसउणे संभरियव्वा इमा विज्जा ।। अज्झयणं-७ / चूलिका-१ र-गए [१३९६] प अ अ ए ह इम्, ज अ ण् अ म् द् अ ण् उ उ अ म् घ् अ ण इ उ म् म् ए दीपरत्नसागर संशोधितः] [128] [३९-महानिसीह ३९-महानिसीहो

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